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Home कविता

अंकिता पंवार की नई कविताएँ

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
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अंकिता पंवार
प्रकाशन- द पब्लिक एजेंडा, वागर्थ, लमही, साक्षात्कार, अमर उजाला, नई धारा, लोक गंगा आकंठ आदि में रचनाएं प्रकाशित
जन्म –टिहरी गढवाल उत्तराखंड
संप्रति-पत्रकारिता
मोबाइल 8860258753
ई-मेल-  1990ankitapanwar@gmail.co
परिकथा के जनवरी-फरवरी नवलेखन अंक में प्रकाशित  कविताएँ। परिकथा से साभार।

तुमसे मिलना एक आखिरी बार

तीस की उम्र में मिलना
चालीस के हो चुके पहले प्रेमी से
बदल चुके हैं सारे समीकरण
सोलह और छब्बीस वाले रूमानी खयाल अब नहीं आते
आज यूं इतने वर्षों बाद मेरे सामने एक छब्बीस वर्षीय प्रेमी नहीं है
एक चालीस वर्षीय आदमी खड़ा है
कुछ पक चुके बालों से  झांक रहा है एक लंबा समय
जिसमें कि बहुत कुछ भुलाया जा चुका है
लकीरें कुछ और बढ़ चुकी हैं तुम्हारी हथेलियों की
शायद मेरी भी
ना तो अब तुम्हारे वो लकड़ी चीरते हाथ हैं
ना अब मेरे ओखल में धान कूटते हाथ हैं
ना ही इन हथेलियों से बुझती है प्यास
धारे के ठंडे पानी की जगह
बिसलेरी की बोतल है
ठेठ केमुंडाखाल से लेकर
इंडिया गेट की दूरी सिर्फ भौगोलिक दूरी नहीं रह गयी है
यहां तक पहुंचते पहुंचते हम तुम गंवा चुके हैं एक उम्र
एक वक्त प्रेम का जो कभी लौट ही नहीं सकता
एक सपना जो अब बहुत गहरी नींद सो चुका है
एक फासला जिसमें तुम्हारा एक घर है
एक फासला जिसमें
मैं मिटाती रही बने हुये घरों के नक्शों को
ओ मेरे चुके खो प्रेमी
तुम से मिलना आज मेरी देह की जरूरत नहीं
तुम से मिलना एक आखरी बार
एक धूमिल पड़ चुकी छवि से आश्वस्त हो जाना है
कि अब कोई नहीं है खड़ा मेरे इंतजार में
बांज के उस सूख चुके वृक्ष के पीछे

 

 

ना तुम, ना मैं, ना समंदर

लैम्प पोस्ट की लाइट पड़ती है आंखों पर
बीड़ी का एक कश
उतरता है गले से
बिखरा हुआ कमरा और बिखर जाता है
कहीं कुछ भी तो नहीं ना आंसू ना शब्द
बस एक कड़कड़ीती देह है
जो अकड़ती जा रही है
उफ कितनी बड़ी बेवकूफी है
न जाने के क्यों भगवान याद आता है अचानक
और उसी क्रम में एक गाली भी इस शब्द के लिए
उतनी ही गालियां इस लिजलिजे प्रेम के लिए
एक दो तीन
प्यार है या सर्कस का टिकट
मैंने प्रेम किया इसकी तमाम बेवकूफियों के साथ
मैंन सोचा क्या एक स्त्री वाकई में कर लेती है कुछ समझौते
एक चुप्पी जो टूट कर कह सकती थी बहुत कुछ
वह चुप्पी चुप्पी ही बनी रह जाती है
एक निर्मम खयाल आता है पूरी निर्ममता के साथ
दुनिया को कर दूं तब्दील एक पुरुष वैश्यालय में
एक ओर झनझनाता है हाथ
एक खयाल जो जूझता है खत्म हो जाने और फिर से बन जाने के बीच
एक खयाल जो जिंदगी को कह देना चाहता है अलविदा
है ही क्या रखा इन खाली हो चुकी हथेलियों में
ना चांदनी रात
ना खुला आसमान
खेत ना जंगल ना पहाड़
ना तुम ना मैं ना समंदर
ना जिंदगी
बस पीछे छूट चुके घर
के ठीक सामने वाले पहाड़
पर चढ़ने और उतरने की एक तीव्र इच्छा
एक ऐसी इच्छा जो खत्म हो जाएगी
अपनी पूरी क्रूरता के साथ

 

रेहाना के नाम

एक बोखौफ आवाज
एक मुस्कुराता चेहरा
सिर्फ मुस्कुराता ही नहीं
दर्ज कराता है मजबूती
यह सिर्फ स्थिर समय ही नहीं
जो सिर्फ इतिहास बनकर रह जाए
मैं सोचती हूं रेहाना तुम मेरी दोस्त तो हो ही
आने वाली हर नस्ल भी तुम्हारे साथ सीखेंगी
मुस्कुराना
और धीरे-धीरे उनमें भी प्रतिकार का बीज उगने लगेगा.
मेरे सामने तुम्हारा चेहरा है
और गूंजती हुई आवाज
तुम कहती हो कि अभी सुंदरता की कद्र नहीं है
ना सुंदर आंखों की ना विचारों की ना आवाज की चेहरे की
तुम सच कहती हो
पर एक सच और भी रेहाना
कुछ लोग हैं जो तुम्हारी सुंदरता का उत्सव नहीं मना रहे बल्कि उसे जी रहे हैं
या जीना शुरू कर रहे हैं.
वो ना तो तुम्हारे द्वारा की गई बलात्कारी की हत्या का उत्सव मना रहे हैं
ना ही तुम्हें दी गई फांसी के गम में
दुनिया को खत्म हो जाने की चिंता कर रहे हैं
वे लड़ रहे हैं जंग उन लोगों के खिलाफ
जो तुम्हें दुनिया से भेज देने को थे आतुर
दुनिया से भेज जाने के आतुर
तुम्हारे लिए कोई नहीं करेगा दुआ किसी जन्नत की
तुम रहोगी जिंदा
हमारी ही धरती पर
क्योंकि अनगिनत लड़ाइया हैं अब भी बाकी

(26 वर्षीय ईरानी महिला रेहाना जब्बारी को  समर्पित जिन्हें अपने बलात्कारी की की हत्या के जुर्म में फांसी दे दी गई)

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

Anhadkolkata

Anhadkolkata

जन्म : 7 अप्रैल 1979, हरनाथपुर, बक्सर (बिहार) भाषा : हिंदी विधाएँ : कविता, कहानी कविता संग्रह : कविता से लंबी उदासी, हम बचे रहेंगे कहानी संग्रह : अधूरे अंत की शुरुआत सम्मान: सूत्र सम्मान, ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार, युवा शिखर सम्मान, राजीव गांधी एक्सिलेंस अवार्ड

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Comments 3

  1. Anonymous says:
    7 years ago

    aapki saari kavitaye kaafi achhi hain ankita ji…… leki rehana ke name awesome hai…….

    Reply
  2. Unknown says:
    6 years ago

    अंकिता जी आपकी समस्त कविताओं का वर्णन इस प्रकार करते हैं कि कविता को पढ़ते-पढ़ते मस्तिष्क में एक द्रश्य-सा बन जाता है……आपकी इन कविताओं में सबसे सुन्दर कविता मुझे "ना तुम, ना मैं, ना समंदर" लगी …..ऐसी कविताओं का इंतज़ार शब्दनगरी के पाठकों को हमेशा रहता है…आपसे निवेदन है कि आप शब्दनगरी पर भी अपनी रचनाये और कवितायेँ लिखे…

    Reply
  3. Anonymous says:
    4 years ago

    ना चांदनी रात
    ना खुला आसमान
    खेत ना जंगल ना पहाड़
    ना तुम ना मैं ना समंदर
    ना जिंदगी
    बस पीछे छूट चुके घर

    ऐसी कविताओं का इंतज़ार शब्दनगरी के पाठकों को हमेशा रहता है,आपसे निवेदन है कि आप https://shabd.in पर आकर पाठकों को इतनी खुबशुरत कविता से अवगत कराएँ….

    धन्यवाद

    Reply

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अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

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