एक उपन्यास भूलन कांदा अंतिका प्रकाशन दिल्ली से
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
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संजीव बख्शी जी के रचना-कर्म का साक्षी बनने का सौभाग्य मुझे मिला है। उनकी कविताओं में शब्द शब्द नहीं रह जाते, वे चित्र बन कर आँखों के सामने किसी चलचित्र की भाँति घूमने लगते हैं। गहरा प्रभाव छोड़ते हैं पाठक के मनोमस्तिष्क पर।
कोंडागाँव और फिर काँकेर (बस्तर, छत्तीसगढ़) में उनकी पदस्थिति के दौरान हम लोग लगातार गोष्ठियाँ करते रहे हैं। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मेरी कई कविताओं के परिमार्जन में श्री बख्शी जी का अभूतपूर्व योगदान रहा है। उनका उपन्यास "भूलन काँदा" तो उम्दा से भी उम्दा है।
हमारी बातचीत पिछले दिनों इस उपन्यास के नाम और इस काँदा के प्रभाव को ले कर भी होती रही है। सचमुच! उत्कृष्ट उपन्यास। विष्णु खरे जी ने इस उपन्यास के विषय में किसी अतिशयोक्ति से काम नहीं लिया है। बख्शी जी से आपने बातें की नहीं कि समझ लीजिये कि आपके सारे गम दूर जा पड़ेंगे। मेरे साथ तो ऐसा ही होता रहा है। मेरे सींकिया शरीर में जान आ जाती है, उनसे बातचीत कर।
आभार भाई…..
संजीव बख्शी जी के रचना-कर्म का साक्षी बनने का सौभाग्य मुझे मिला है। उनकी कविताओं में शब्द शब्द नहीं रह जाते, वे चित्र बन कर आँखों के सामने किसी चलचित्र की भाँति घूमने लगते हैं। गहरा प्रभाव छोड़ते हैं पाठक के मनोमस्तिष्क पर।
कोंडागाँव और फिर काँकेर (बस्तर, छत्तीसगढ़) में उनकी पदस्थिति के दौरान हम लोग लगातार गोष्ठियाँ करते रहे हैं। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मेरी कई कविताओं के परिमार्जन में श्री बख्शी जी का अभूतपूर्व योगदान रहा है। उनका उपन्यास "भूलन काँदा" तो उम्दा से भी उम्दा है।
हमारी बातचीत पिछले दिनों इस उपन्यास के नाम और इस काँदा के प्रभाव को ले कर भी होती रही है। सचमुच! उत्कृष्ट उपन्यास। विष्णु खरे जी ने इस उपन्यास के विषय में किसी अतिशयोक्ति से काम नहीं लिया है। बख्शी जी से आपने बातें की नहीं कि समझ लीजिये कि आपके सारे गम दूर जा पड़ेंगे। मेरे साथ तो ऐसा ही होता रहा है। मेरे सींकिया शरीर में जान आ जाती है, उनसे बातचीत कर।
संजीव बख्शी जी के रचना-कर्म का साक्षी बनने का सौभाग्य मुझे मिला है। उनकी कविताओं में शब्द शब्द नहीं रह जाते, वे चित्र बन कर आँखों के सामने किसी चलचित्र की भाँति घूमने लगते हैं। गहरा प्रभाव छोड़ते हैं पाठक के मनोमस्तिष्क पर।
कोंडागाँव और फिर काँकेर (बस्तर, छत्तीसगढ़) में उनकी पदस्थिति के दौरान हम लोग लगातार गोष्ठियाँ करते रहे हैं। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मेरी कई कविताओं के परिमार्जन में श्री बख्शी जी का अभूतपूर्व योगदान रहा है। उनका उपन्यास "भूलन काँदा" तो उम्दा से भी उम्दा है।
हमारी बातचीत पिछले दिनों इस उपन्यास के नाम और इस काँदा के प्रभाव को ले कर भी होती रही है। सचमुच! उत्कृष्ट उपन्यास। विष्णु खरे जी ने इस उपन्यास के विषय में किसी अतिशयोक्ति से काम नहीं लिया है। बख्शी जी से आपने बातें की नहीं कि समझ लीजिये कि आपके सारे गम दूर जा पड़ेंगे। मेरे साथ तो ऐसा ही होता रहा है। मेरे सींकिया शरीर में जान आ जाती है, उनसे बातचीत कर।
संजीव बख्शी जी के रचना-कर्म का साक्षी बनने का सौभाग्य मुझे मिला है। उनकी कविताओं में शब्द शब्द नहीं रह जाते, वे चित्र बन कर आँखों के सामने किसी चलचित्र की भाँति घूमने लगते हैं। गहरा प्रभाव छोड़ते हैं पाठक के मनोमस्तिष्क पर।
कोंडागाँव और फिर काँकेर (बस्तर, छत्तीसगढ़) में उनकी पदस्थिति के दौरान हम लोग लगातार गोष्ठियाँ करते रहे हैं। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि मेरी कई कविताओं के परिमार्जन में श्री बख्शी जी का अभूतपूर्व योगदान रहा है। उनका उपन्यास "भूलन काँदा" तो उम्दा से भी उम्दा है।
हमारी बातचीत पिछले दिनों इस उपन्यास के नाम और इस काँदा के प्रभाव को ले कर भी होती रही है। सचमुच! उत्कृष्ट उपन्यास। विष्णु खरे जी ने इस उपन्यास के विषय में किसी अतिशयोक्ति से काम नहीं लिया है। बख्शी जी से आपने बातें की नहीं कि समझ लीजिये कि आपके सारे गम दूर जा पड़ेंगे। मेरे साथ तो ऐसा ही होता रहा है। मेरे सींकिया शरीर में जान आ जाती है, उनसे बातचीत कर।