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Home कविता

चर्चित कवि अशोक कुमार पाण्डेय के जन्मदिन पर उनकी एक कविता

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
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    • महत्वपूर्ण कवि-कथाकार अशोक कुमार पाण्डेय का आज जन्मदिन है। उन्हें जन्मदिन की ढेर सारी बधाइयां-शुभकामनाएं… इस अवसर पर अनहद पर उनकी एक कविता पढ़ते हैं…..


      रोने की जगह मुस्करा रही थी वह लड़की….

      वह मुस्कराती थी
      बस मुस्कराए जाती थी लगातार
      और उसके होठ मेरी उँगलियों की तरह लगते थे
      उसके पास बहुत सीमित शब्द थे जिन्हें वह बहुत संभाल कर खर्च करती थी
      हम दोनों के बीच एक काउंटर था जो हम दोनों से अधिक ख़ूबसूरत था
      वह बार-बार उन शब्दों को अलग-अलग क्रमों में दोहरा रही थी
      जिनसे ठीक विपरीत थी उसकी मुसकराहट
      उस वक़्त मैं भी मुस्कुराना चाहता था लेकिन उसकी मुस्कराहट का आतंक तारी था मुझ पर.

      कोई था उसकी मुसकराहट की आड में
      हम दोनों ने नहीं देखा था उसे
      वह पक्ष में थी जिसके और मैं विपक्ष में
      एक पुराने बिल और वारंटी कार्ड के हथियार से मैं हमला करना चाहता था
      और उसकी मुसकराहट कह रही थी कि बेहद कमजोर हैं तुम्हारे हथियार
      मेरे हथियारों की कमजोरी में उस अदृश्य आदमी की ताकत छुपी हुई थी

      कहीं नहीं था वह आदमी उस पूरे दृश्य में
      हम ठीक से उसका नाम भी नहीं जानते थे
      हम जिसे जानते थे वह नहीं था वह आदमी
      पता नहीं उसके दो हाथ और दो पैर थे भी या नहीं
      पता नहीं उसका कोई नाम था भी या नहीं
      जो चिपका था उस दफ्तर के हर कोने में वह नाम नहीं हो सकता था किसी इंसान का

      वह जो कहीं नहीं था और हर कहीं था
      मुझे उससे पूछने थे कितने सारे सवाल
      मैं मोहल्ले के दुकानदार की तरह उस पर गला फाड़ कर चिल्लाना चाहता था
      मैं चाहता था उसके मुंह पर दे मारूं उसका सामान और कहूँ ‘पैसे वापस कर मेरे’
      मैं चाहता था वह झुके थोड़ा मेरे रिश्तों के लिहाज में
      फिर भले न वापस करे पैसे पर थोड़ा शर्मिन्दा होने का नाटक करे
      एक चाय ही मंगा ले कम शक्कर की
      हाल ही पूछ ले पिता जी का
      दो चार गालियाँ ही दे ले आढत वाले को…

      लेकिन वहाँ उस काउंटर पर बस एक ठन्डे पानी का गिलास था
      और उससे भी ठंढी उस लड़की की मुसकराहट
      जिससे खीझा चाहे जितना जाए रीझा नहीं जा सकता बिलकुल भी
      जिससे लड़ते हुए कुछ नहीं हासिल किया जा सकता सिवा थोड़ी और उदास मुसकराहट के
      मुझे हर क्षण लगता था कि बस अब रो देगी वह
      लेकिन हर अगले जवाब के बाद और चौडी हो जाती उसकी मुसकराहट

      क्या कोई जादू था उस काउंटर के पीछे कि बार-बार पैरों की टेक बदलती भी मुस्करा लेती थी वह
      या फिर जादू उस नाम में जो किसी इंसान का हो ही नहीं सकता था
      कि धोखा खाने के बावजूद जग रही थी मुझमें मुस्कराने की अदम्य इच्छा
      क्या जादू था उस माहौल में कि चीखने की जगह सोच रहा था मैं
      और रोने की जगह मुस्करा रही थी वह लड़की….

      क्या ऐसे ही मुस्कराती होगी वह जब देर से लौटने पर डांटते होंगे पिता?
      प्रेमी की प्रतीक्षा में क्या ऐसे ही बदलती होगी पैरों की टेक?
      क्या ऐसे ही बरतती होगी नपे-तुले शब्द दोस्तों के बीच भी?
      क्या वह कभी नहीं लडी होगी मोहल्ले के दुकानदार से?

      मान लीजिए मिल जाए किसी दिन किसी भीडभाड वाली बस में
      या कि किसी शादी-ब्याह में बाराती हूँ मैं और वह दिख जाय घराती की तरह
      या फिर किसी चाट की दूकान पर भकोसते हुए गोलगप्पे टकरा जाएँ नज़रें…
      तब?
      तब भी मुस्कराएगी क्या वह इसी तरह?

  • Ashok Kumar Pandey

    8 minutes ago

    Ashok Kumar Pandey

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

Anhadkolkata

Anhadkolkata

जन्म : 7 अप्रैल 1979, हरनाथपुर, बक्सर (बिहार) भाषा : हिंदी विधाएँ : कविता, कहानी कविता संग्रह : कविता से लंबी उदासी, हम बचे रहेंगे कहानी संग्रह : अधूरे अंत की शुरुआत सम्मान: सूत्र सम्मान, ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार, युवा शिखर सम्मान, राजीव गांधी एक्सिलेंस अवार्ड

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Comments 1

  1. संतोष त्रिवेदी says:
    10 years ago

    भाई जी को जन्मदिन और कबिताई की बधाई !

    Reply

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अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.

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