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Home कविता

दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’ की चार गजलें

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
A A
16
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दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’  हिन्दी ग़ज़ल लेखन की दुनिया में एक जाना पहचाना नाम है। अनहद पर प्रस्तुत है इस बार दिनेश जी की चार ताजा ग़ज़लें। आपकी बेबाक प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।
(एक)                                                             
आईने पर यक़ीन रखते हैं ,
वो जो चेहरा हसीन रखते हैं .

आंख में अर्श की बुलन्दी है ,
दिल में लेकिन ज़मीन रखते हैं .

दीन-दुखियों का है खुदा तब तो ,
आओ हम खुद को दीन रखते हैं .

जिनके दम पर है आपकी रौनक  ,
उनको फिर क्यों मलीन रखते हैं .  

विषधरों के नगर में रहना है ,   
हम विवश होके बीन रखते है .    

ये सियासत की फ़िल्म है जिसमें ,
सिर्फ़ वादों के सीन रखतें हैं

(दो)
एक झूठी मुस्कुराह्ट को खुशी कहते रहे ,
सिर्फ़ जीने भर को हम क्यों ज़िन्दगी कहते रहे .

लोग प्यासे कल भी थे हैं आज भी प्यासे बहुत ,
फिर भी सब सहरा को जाने क्यों नदी कहते रहे .

हम तो अपने आप को ही ढूंढते थे दर-ब-दर ,
लोग जाने क्या समझ आवारगी कहते रहे .

अब हमारे लब खुले तो आप यूं बेचैन हैं ,
जबकि सदियों चुप थे हम बस आप ही कहते रहे .

रहनुमाओं में तिज़ारत का हुनर क्या खूब है ,    
तीरगी  दे करके हमको रोशनी कहते रहे .

(तीन)

एक लम्हा गुजार कर आये ,
या कि सदियों को पार कर आये .

जीत के सब थे दावेदार मगर ,
एक हम थे कि हारकर आये .

आईने सब खिलाफ़ थे लेकिन ,
पत्थरों से क़रार कर आये .

ज़िन्दगी एक तुझसे निभ जाये ,
खुद से धोखे हज़ार कर आये .

आज़ ही हम बज़ार में पहुंचे ,     
आज ही हम उधार कर आये .

अपने दामन को खुद रफ़ू करके ,
खुद की फिर तार-तार कर आये .  

तेरी महफ़िल में ‘शम्स’ जो आये , 
ग़म की चादर उतार कर आये .

(चार)

ख़्वाहिश-ए-दिल हज़ार बार मरे ,
पर न इक बार भी किरदार मरे .

प्यार गुलशन करे है दोनो से ,
न तो गुल और न ही ख़ार मरे .

चल पड़े तो किसी की जान मरे ,
न चले तो छुरी की धार मरे .

ताप तन का उतर भी जाये मगर ,
कैसे मन पर चढा बुखार मरे .

ज़िन्दगी तू है अब तलक ज़िन्दा ,
मौत के दांव बेशुमार मरे . 
________________________________________________________________________________
दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’

परिचय
नाम – डा. दिनेश त्रिपाठी `शम्स’
उपनाम – `शम्स’
जन्मतिथि -०३ जुलाई १९७५
जन्मस्थान – मंसूरगंज , बहराइच , उत्तर प्रदेश    
शिक्षा – एम . ए.(हिन्दी), बी. एड., पीएचडी.(हिन्दी)
सम्प्रति – वरिष्ठ प्रवक्ता (हिन्दी)
         जवाहर नवोदय विद्यालय , बलरामपुर , उत्तर प्रदेश  
पुस्तकें – (१) जनकवि बंशीधर शुक्ल का खडी बोली काव्य (शोध प्रबंध ),मीनाक्षी प्रकाशन,नयी दिल्ली
        (२) आखों में आब रहने दे (गजल संग्रह ) मीनाक्षी प्रकाशन , नयी दिल्ली
सम्मान – (१) –साहित्यिक संस्था काव्य धारा , रामपुर , उत्तर प्रदेश द्वारा सारस्वत सम्मान
        (२) –अखिल भारतीय हिन्दी विधि प्रतिष्ठान द्वारा द्वारा सारस्वत सम्मान
        (३) –अखिल भारतीय अगीत परिषद , लखनऊ द्वारा दान बहादुर सिंह  सम्मान
        (४)- बाल प्रहरी , द्वाराहाट , अल्मोड़ा , उत्तराखन्ड द्वारा राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान
        (५) – गुंजन साहित्यिक मंच रामपुर , उत्तरप्रदेश द्वारा प्रशस्ति –पत्र
        (६) –शिक्षा साहित्य कला विकास समिति,बहराइच,उत्तर प्रदेश द्वारा गजल श्री सम्मान     
        (७) – नवोदय विद्यालय समिति , नयी दिल्ली द्वारा गुरु श्रेष्ठ सम्मान
        (८) – जनकवि बंशीधर शुक्ल स्मारक समिति , लखीमपुर , उत्तरप्रदेश द्वारा जनकवि   बंशीधर शुक्ल सम्मान
        (९) – प्रोग्राम सपोर्ट यूनिट फाउंडेशन द्वारा ग्रामीण विकास के क्षेत्र में सृजनात्मक योगदान हेतु प्रशस्ति –पत्
       (१०)- अंजुमन फरोगे अदब , बहराइच उत्तर प्रदेश द्वारा स्व. श्याम प्रकाश अग्रवाल सम्मान
       (११)- नगर पालिका परिषद , बहराइच द्वारा अभिनन्दन एवं प्रशस्तिपत्र प्रदत्त
पता – जवाहर नवोदय विद्यालय
      ग्राम – घुघुलपुर , पोस्ट – देवरिया -२७१२०१
      जिला – बलरामपुर , उत्तर प्रदेश       
संपर्क – मोबाइल – ०९५५९३०४१३१
       इमेल – yogishams@yahoo.com
ब्लॉग – dinesh-tripathi.blogspot.com
              

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

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दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’  हिन्दी ग़ज़ल लेखन की दुनिया में एक जाना पहचाना नाम है। अनहद पर प्रस्तुत है इस बार दिनेश जी की चार ताजा ग़ज़लें। आपकी बेबाक प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।
(एक)                                                             
आईने पर यक़ीन रखते हैं ,
वो जो चेहरा हसीन रखते हैं .

आंख में अर्श की बुलन्दी है ,
दिल में लेकिन ज़मीन रखते हैं .

दीन-दुखियों का है खुदा तब तो ,
आओ हम खुद को दीन रखते हैं .

जिनके दम पर है आपकी रौनक  ,
उनको फिर क्यों मलीन रखते हैं .  

विषधरों के नगर में रहना है ,   
हम विवश होके बीन रखते है .    

ये सियासत की फ़िल्म है जिसमें ,
सिर्फ़ वादों के सीन रखतें हैं

(दो)
एक झूठी मुस्कुराह्ट को खुशी कहते रहे ,
सिर्फ़ जीने भर को हम क्यों ज़िन्दगी कहते रहे .

लोग प्यासे कल भी थे हैं आज भी प्यासे बहुत ,
फिर भी सब सहरा को जाने क्यों नदी कहते रहे .

हम तो अपने आप को ही ढूंढते थे दर-ब-दर ,
लोग जाने क्या समझ आवारगी कहते रहे .

अब हमारे लब खुले तो आप यूं बेचैन हैं ,
जबकि सदियों चुप थे हम बस आप ही कहते रहे .

रहनुमाओं में तिज़ारत का हुनर क्या खूब है ,    
तीरगी  दे करके हमको रोशनी कहते रहे .

(तीन)

एक लम्हा गुजार कर आये ,
या कि सदियों को पार कर आये .

जीत के सब थे दावेदार मगर ,
एक हम थे कि हारकर आये .

आईने सब खिलाफ़ थे लेकिन ,
पत्थरों से क़रार कर आये .

ज़िन्दगी एक तुझसे निभ जाये ,
खुद से धोखे हज़ार कर आये .

आज़ ही हम बज़ार में पहुंचे ,     
आज ही हम उधार कर आये .

अपने दामन को खुद रफ़ू करके ,
खुद की फिर तार-तार कर आये .  

तेरी महफ़िल में ‘शम्स’ जो आये , 
ग़म की चादर उतार कर आये .

(चार)

ख़्वाहिश-ए-दिल हज़ार बार मरे ,
पर न इक बार भी किरदार मरे .

प्यार गुलशन करे है दोनो से ,
न तो गुल और न ही ख़ार मरे .

चल पड़े तो किसी की जान मरे ,
न चले तो छुरी की धार मरे .

ताप तन का उतर भी जाये मगर ,
कैसे मन पर चढा बुखार मरे .

ज़िन्दगी तू है अब तलक ज़िन्दा ,
मौत के दांव बेशुमार मरे . 
________________________________________________________________________________
दिनेश त्रिपाठी ‘शम्स’

परिचय
नाम – डा. दिनेश त्रिपाठी `शम्स’
उपनाम – `शम्स’
जन्मतिथि -०३ जुलाई १९७५
जन्मस्थान – मंसूरगंज , बहराइच , उत्तर प्रदेश    
शिक्षा – एम . ए.(हिन्दी), बी. एड., पीएचडी.(हिन्दी)
सम्प्रति – वरिष्ठ प्रवक्ता (हिन्दी)
         जवाहर नवोदय विद्यालय , बलरामपुर , उत्तर प्रदेश  
पुस्तकें – (१) जनकवि बंशीधर शुक्ल का खडी बोली काव्य (शोध प्रबंध ),मीनाक्षी प्रकाशन,नयी दिल्ली
        (२) आखों में आब रहने दे (गजल संग्रह ) मीनाक्षी प्रकाशन , नयी दिल्ली
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        (२) –अखिल भारतीय हिन्दी विधि प्रतिष्ठान द्वारा द्वारा सारस्वत सम्मान
        (३) –अखिल भारतीय अगीत परिषद , लखनऊ द्वारा दान बहादुर सिंह  सम्मान
        (४)- बाल प्रहरी , द्वाराहाट , अल्मोड़ा , उत्तराखन्ड द्वारा राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मान
        (५) – गुंजन साहित्यिक मंच रामपुर , उत्तरप्रदेश द्वारा प्रशस्ति –पत्र
        (६) –शिक्षा साहित्य कला विकास समिति,बहराइच,उत्तर प्रदेश द्वारा गजल श्री सम्मान     
        (७) – नवोदय विद्यालय समिति , नयी दिल्ली द्वारा गुरु श्रेष्ठ सम्मान
        (८) – जनकवि बंशीधर शुक्ल स्मारक समिति , लखीमपुर , उत्तरप्रदेश द्वारा जनकवि   बंशीधर शुक्ल सम्मान
        (९) – प्रोग्राम सपोर्ट यूनिट फाउंडेशन द्वारा ग्रामीण विकास के क्षेत्र में सृजनात्मक योगदान हेतु प्रशस्ति –पत्
       (१०)- अंजुमन फरोगे अदब , बहराइच उत्तर प्रदेश द्वारा स्व. श्याम प्रकाश अग्रवाल सम्मान
       (११)- नगर पालिका परिषद , बहराइच द्वारा अभिनन्दन एवं प्रशस्तिपत्र प्रदत्त
पता – जवाहर नवोदय विद्यालय
      ग्राम – घुघुलपुर , पोस्ट – देवरिया -२७१२०१
      जिला – बलरामपुर , उत्तर प्रदेश       
संपर्क – मोबाइल – ०९५५९३०४१३१
       इमेल – yogishams@yahoo.com
ब्लॉग – dinesh-tripathi.blogspot.com
              

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Comments 16

  1. vandan gupta says:
    14 years ago

    सुन्दर भावाव्यक्ति।

    Reply
  2. sushmaa kumarri says:
    14 years ago

    khubsurat gazle…..

    Reply
  3. dinesh tripathi says:
    14 years ago

    अनहद पर अपनी गज़लें देखकर प्रसन्नता हो रही है . इन ग़ज़लों का यहाँ पर होना मेरे प्रति बिमलेश भाई की आत्मीयता की तसदीक करता है . अनहद के प्रति अनंत शुभकामनायें . उम्मीद है गज़ल के पाठकों को ये गज़लें आश्वस्त करेंगी . आभारी हूँ बिमलेश भाई के प्रति कि उन्होंने इन ग़ज़लों को सुधिजनों तक पहुंचाया .
    डा.दिनेश त्रिपाठी 'शम्स'

    Reply
  4. Sheela says:
    14 years ago

    आंख में अर्श की बुलन्दी है ,
    दिल में लेकिन ज़मीन रखते हैं .,, bahut khub dinesh ji,,
    koi shak nahi ap behtarin likhte hai,,, swagt…

    Reply
  5. Vishwas rathod says:
    14 years ago

    बहोत खूब फरमाया शम्शजी…

    Reply
  6. Anonymous says:
    14 years ago

    very nice sir….

    Reply
  7. Ashwani singh says:
    14 years ago

    very nice sir

    Reply
  8. Mahesh Chandra Punetha says:
    14 years ago

    एक झूठी मुस्कुराह्ट को खुशी कहते रहे ,
    सिर्फ़ जीने भर को हम क्यों ज़िन्दगी कहते रहे .

    आंख में अर्श की बुलन्दी है ,
    दिल में लेकिन ज़मीन रखते हैं . ……….dinesh bhai ki gajalen aksar padata raha hun.ek bar fir अनहद main unaki kavita padana achha laga. badhai unako …..unaka lekhan satat jari rahega aage or behatareen gajalen padane ko milengi.

    Reply
  9. चला बिहारी ब्लॉगर बनने says:
    14 years ago

    डॉ. दिनेश त्रिपाठी की ग़ज़लों से मेरा परिचय काफी पुराना है… जितने संवेदनशील व्यक्ति ये स्वयं हैं, उतनी ही संवेदनशील इनकी गज़लें होती हैं… या यों कहें कि इनकी संवेदनशीलता ग़ज़लों में खुलकर अभिव्यक्त होती है… यहाँ प्रस्तुत चारों गज़लें एक से बढकर एक हैं… हर अगली गज़ल पिछली से बेहतर मालूम होती है!! किसी एक शेर को उद्धृत करना उचित न होगा, सरे अशार लाजवाब हैं!!
    शम्स साहब आप शायरी की नयी बुलंदियां छुएं!!

    Reply
  10. Anoop Aakash Verma says:
    14 years ago

    बहुत अच्छी नज्में हैं….कुछ पहले भी पढ़ चुका हूँ

    Reply
  11. सुन्दर सृजक says:
    14 years ago

    आईने सब खिलाफ़ थे लेकिन ,
    पत्थरों से क़रार कर आये .

    बेहतरीन गजलें !

    Reply
  12. Nityanand Gayen says:
    14 years ago

    जिनके दम पर है आपकी रौनक ,
    उनको फिर क्यों मलीन रखते हैं .

    सभी गज़ले बहुत रोचक / सुंदर है …………….. धन्यवाद

    Reply
  13. Sonroopa Vishal says:
    13 years ago

    आज की गजल अपने समयकाल को जीती है , ये गजलें उसी मिजाज को बयां कर रही हैं ……..बढ़िया !

    Reply
  14. प्रदीप कांत says:
    12 years ago

    जीत के सब थे दावेदार मगर ,
    एक हम थे कि हारकर आये

    Reply
  15. Unknown says:
    10 years ago

    तारीफ तो तब से कर रहा हूं जब से तुमने लिखना शुरू किया था बुलदीं पर पहुचने की बधाई प्रकाश को भी बधाई

    Reply
  16. Unknown says:
    10 years ago

    तारीफ तो तब से कर रहा हूं जब से तुमने लिखना शुरू किया था बुलदीं पर पहुचने की बधाई प्रकाश को भी बधाई

    Reply

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अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

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