अरूण शीतांश – 09431685589 |
सुबह की पहली किरण
यह रात
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
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बहुत सुन्दर रोचक कविताएँ| धन्यवाद|
you have the mastered art of personification of nature- here The Night…like Wordsworth and one can feel the ecstasy even in melancholic cry of a displaced soul whether be it son..or father….grandmother……nice poems. I think vimlesh sir likes poems on relations….Thank you!!!!!!!!!!!
उनके लड़के धनबाद में बस गए ||
मैं भी हूँ धनबाद में
पता लगता हूँ
दादी और मिट्टी को लेकर जो उदास रात बनाई है बहुत ही गजब है… "और हर मिट्टी के लोंदों से बनी
मेरी दादी….।" बहुत बहुत बधाई…
शेषनाथ पाण्डेय…
बहुत खूब .. मिट्टी की सोंधी खुसबू की तरह महकती हुई रचनाएँ …
बेहतरीन कवितायेँ !माटी के गंध से मह- मह करती और सीधे भीतर तक घर कर जाती .उजड़ते गाँव और बचपन की यादों का ताना बना अपने आगोश में ले लेता है .बधाई !