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Home कविता

युवा कवि अरूण शीतांश की कविताएं

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
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6
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शालू शुक्ला की कविताएँ

अरूण शीतांश का जन्म 1972 में अरवल जिले के विष्णुपुरा गांव में हुआ था। भूगोल से स्नातकोत्तर और फिर पी.एच.डी. की उपाधि अर्जित करने वाले अरूण शीतांश की कविताएं देश की सभी बड़ी पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। एक ऐसी दुनिया की तलाश में काव्य संग्रह वाणी प्रकाशन से छप चुका है। मगही इलाके में ( कविता संग्रह) और शब्द साक्षी हैं (आलोचना) शीघ्र प्रकाश्य हैं। इनकी कविताओं का अनुवाद बांग्ला, उड़िया तथा अन्य भारतीय भाषाओं के साथ स्पेनिश और अंग्रेजी में भी हुआ है। फिलहाल अरूण जी देशज पत्रिका के संपादन के साथ ही डी.ए.वी. में सेवारत हैं।
अरूण शीतांश – 09431685589
अरूण शीतांश की कविताएं लोक मानस की उपज हैं और लोक की संवेदना से संश्लिष्ट ये कविताएं पाठकों के कोमल तंतुओं को छूती हैं। अरूण एक ऐसे कवि हैं जिन्हें शब्दों के मायाजाल से सख्त ऐतराज है। जीवन और रचना दोनों ही जगह अरूण अपनी सहजता और साफगोई से सामने वाले को गहरे प्रभावित करते हैं। कविता से अरूण बनते हैं और फिर कविता भी संभव करते हैं एक ऐसी कविता जो गहरे मावीय बोध के साथ हमारे समक्ष खड़ी होती हैं और हमारे दिलों में विश्वास और सहभागिता का एक सेतु रचती है । अनहद पर इस बार प्रस्तुत है युवा कवि अरूण शीतांश की तीन कविताएं। आपकी प्रतिक्रियाएं आमंत्रित हैं।
सांवली रात


सुबह की पहली किरण
पपनी पर पड़ती गई
और मैं सुंदर होता गया
शाम की अंतिम किरण
अंतस पर गिरती गई
और मैं हरा होता रहा
रात की रौशनी
पूरे बदन पर लिपटती गई
और मैं सांवला होता गया
उदास रात
दादी की लोरी
सरसों के फूल की तरह होती थी
आज की रात
हां, आज की रात
कौन सुनाएगा लोरी
कि सो सकूं


यह रात
नगर की रात है
होटल की रात है
दादी की गोद नहीं
बरसात का मौसम है
पांव में पंक नहीं लगे हैं
इसलिए जूते में लगे
मिट्टी की सुगंध से
आधी रात
खुश रहा
और आधी रात उदास आंख खोल सोता रहा
याद आती रही
गांव के पूरब में
केवाल मिट्टी
पश्चिम में बलुआही
उत्तर में ललकी
और दक्षिण में सब की सब मिट्टियां
और हर मिट्टी के लोंदों से बनी
मेरी दादी….।
बाबूजी
किसी विज्ञापन के लिए नहीं आया था यहां
धकेल दिया गया था गले में हड्डी लटकाकर
विष्णुपुरा से आरा
महज संयोज नहीं था
भगा दिया गया था मैं
बाबूजी
आपकी याद बहुत आती है
जब एक कंधे पर मैं बैठता था
और दूसरे कंधे पर कुदाल
रखे हुए केश को सहलाते हुए चला जाता था
खेंतों की मेड़ पर गेहूं की बालियां लेती थीं हिलोरें
थके हारे चेहरे पर तनिक भी नहीं था तनाव
नरकी चाची चट पट खाना निकाल जमीन को पोतते हुए
आंचल से सहला देती थी गाल
आज आप पांच लड़कों पांच पोतों और दो पोतियों के बीच
अकेले हैं
पता नहीं आब आप क्यों नहीं जाते खेत
क्यों नहीं जाते बाबा की फुलवारी
फिर ढहे हुए मकान में रहना चाहते हैं
और गांव जाने पर काजू-किशमिश खिलाना चाहते हैं
आप अब नहीं खिलाते बिस्कुट
जुल्म बाबा की दुकानवाली
जो दस बार गोदाम में गोदाम में या बीस बार बोयाम में हाथ डालकर
एक दाना दालमोट निकालते जैसे जादू
सुना है उस जादूगर की जमीन बिक गई
अनके लड़के धनबाद में बस गए
वहां आटा चक्की चलाते हैं
बाबूजी आपकी याद बहुत आती है
मधुश्रवा मलमास मेला की मिठाई
और परासी बाजार का शोभा साव का कपड़ा
आपके झूलन भारती दोस्त
सब याद आते हैं
सिर्फ याद नहीं आती है
अपने बचपन की मुस्कान….. 

हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

Tags: अरूण शीतांश
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Comments 6

  1. Patali-The-Village says:
    14 years ago

    बहुत सुन्दर रोचक कविताएँ| धन्यवाद|

    Reply
  2. सुन्दर सृजक says:
    14 years ago

    you have the mastered art of personification of nature- here The Night…like Wordsworth and one can feel the ecstasy even in melancholic cry of a displaced soul whether be it son..or father….grandmother……nice poems. I think vimlesh sir likes poems on relations….Thank you!!!!!!!!!!!

    Reply
  3. रविकर says:
    14 years ago

    उनके लड़के धनबाद में बस गए ||

    मैं भी हूँ धनबाद में
    पता लगता हूँ

    Reply
  4. shanti bhushan says:
    14 years ago

    दादी और मिट्टी को लेकर जो उदास रात बनाई है बहुत ही गजब है… "और हर मिट्टी के लोंदों से बनी
    मेरी दादी….।" बहुत बहुत बधाई…

    शेषनाथ पाण्डेय…

    Reply
  5. दिगम्बर नासवा says:
    14 years ago

    बहुत खूब .. मिट्टी की सोंधी खुसबू की तरह महकती हुई रचनाएँ …

    Reply
  6. Brajesh Kumar Pandey says:
    14 years ago

    बेहतरीन कवितायेँ !माटी के गंध से मह- मह करती और सीधे भीतर तक घर कर जाती .उजड़ते गाँव और बचपन की यादों का ताना बना अपने आगोश में ले लेता है .बधाई !

    Reply

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अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

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