नील कमल / संपर्कः 09433123379 |
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
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neelkamal ji ko badhai! poori shrikhala sundar hai ..
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
सुन्दर अभिव्यक्ति
bahut khubsurat kavitayen ….
बेचैन और सोचने पर मजबूर करती कविताएं। अच्छी लगीं।
बांझ कोख सी उदासी में
डूबी है दुनिया
जिसकी बेहतरी की उम्मीद में
जागती आंखें झुकी रहती हैं
क्षमा-प्रार्थना की मुद्रा में इन दिनों
होठों से धीमे- धीमे
निकलता है स्वर,
क्षमा ! क्षमा ! बस क्षमा !!
कहते हैं हम एक-दूसरे से ।
………….बहुत खूब !!!
एक शब्द चमक सकता था
अंधेरे में जुगनू बन
एक शब्द कहीं धमाके के साथ
फट सकता था
सोई चेतना के ऊसर में
एक शब्द को लोहे में
बदल सकते थे हम
धारदार बना सकते थे उसे
हमसे नहीं हुआ इतना भी,
इतना भी न हुआ..
यही तो सब कहते हैं कि–
हम से यह भी न हुआ ……….
ऐसे आत्म-धिक्कार में हम सब जी रहें हैं !
लेकिन क्या कहीं कोई उम्मीद नहीं बची ?
क्या हमारे जीने का औचित्य और सार्थकता ख़त्म हो गई ?
नहीं , मैं इसे नहीं मानता ! जब तक धरती पर मनुष्य है,
मनुष्यता है ,तब तक उम्मीद है !
"कोशिश करो,कोशिश करो
जीने की
ज़मीन में गड़ कर भी …….." ( मुक्तिबोध )
नीलकमल जी की कविता बहुत ही सुन्दर है ! ख़ास कर इसकी सहज भाषा जो उन्हें स्वाभाविक कवि के रूप में स्थापित करती है ! कविता निराशा के स्याह रंगों में लथपथ है और उसकी कारुणिकता उद्वेलित करती है और प्रेरित भी कि हम उचक कर किसी रोशनी की तलाश करें !
शब्दों के भ्रमजाल से दूर विचारों की सुन्दर अभिव्यक्ति. बहुत अच्छी सुन्दर कविताएं. बधाई
– लीना मल्होत्रा
phir se padhi aur maanti hoon ki yah shandaar kavita baar baar padhne yogy hai. sabhar.