पराग मांदले इस समय के एक स्थापित और चर्चित कथाकार हैं। उनकी कहानियां बिल्कुल अलग मिजाज की होने के कारण अलग से ध्यान खींचती हैं। शुरूआत उन्होंने कविता से की थी। उनका फिर से कविताओं की ओर लौटना एक उम्मीद तो जगाता ही है, साथ ही उनके अन्दर की काव्यभूमि से भी हमारा परिचय कराता है। प्रस्तुत है इसबार अनहद पर उनकी ताजा कविताएं। आपकी प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा, हमेशा की तरह… – अनहद
परिचय कुछ खास नहीं है। कविताओं से शुरुआत हुई थी लेखन की, मगर कहानियों का रास्ता पकड़ लिया। कहानियों की एक किताब – राजा, कोयल और तंदूर – भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हो चुकी हैं। कहानियां यदा-कदा कुछ पत्रिकाओं में छपती रहती हैं। पत्रकारिता से शुरुआत कर अब केंद्र सरकार की नौकरी बजा रहा हूँ नासिक में। बस।
— पराग मांदले
पेड़
एक
आधी रात के अंधेरे में
डराता है जिस तरह
खिड़की के बाहर खड़ा
डौलदार पेड़,
वैसे नहीं रहूंगा मैं
जीवन में तुम्हारे।
इसका यह अर्थ नहीं है
कि मेरी अनुपस्थिति भरेगी
तुम्हारे अस्तित्व के किसी हिस्से को
गाढ़े काले रंग से।
इसका यह अर्थ भी नहीं है
कि जेठ की तपती दुपहरी में
मिलने वाली शीतल छाया से भी
वंचित रह जाओगे तुम
मेरे न रहने से।
तमाम आशंकाओं के उलट
मौजूद रहूंगा मैं
तुम्हारे आँगन के किसी सूने कोने में
हमेशा
एक उदास खुशी के साथ
फल देने के लिए
तुम्हारे फेंके गए
हर ढेले के बदले में।
।
दो
चाहे कुछ
कहा न हो मैंने उसे
मगर जानता है बहुत कुछ
आँगन में खड़ा
वह आम का पेड़ बड़ा।
झाँकता है अकसर
खिड़की से वह
मेरे कमरे के भीतर,
कहता नहीं कुछ कभी
बस देखा करता है मौन
मेरी आँखों में तैरते मायूसी के आँसू
मेरे चेहरे पर फैली विरह की पीड़ा
बेबसी से काँपते हाथ मेरे
अबोले से थरथराते होंठ
मेरी बेचैन चहलकदमी
और मेरी अंतहीन उदासी
कभी-कभी तो
आँखों के रास्ते झाँककर
भीतर
देख लेता है वह
मेरी आत्मा प्यासी।
कल रात जब
अपने दिल के हरे घरोंदे में सोए
सुनहरी किनार लिए
नीले पंखों वाले परिंदे को
धीमे से जगाकर
कही थी उसने
दास्तां मेरी
तो आधी रात के
काले गाढ़े अंधकार को चीरकर
उड़ गया था वह परिंदा
चीखते हुए
असीम आकाश में।
अब
दसों दिशाओं को है मालूम
मेरी व्यथा
एक बस शायद
तुम्हें ही नहीं है पता।
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
romanchak hai
romanchak hai………………..
[BUDDHI LAL PAL]
तमाम आशंकाओं के उलट
मौजूद रहूंगा मैं
तुम्हारे आँगन के किसी सूने कोने में
हमेशा
एक उदास खुशी के साथ
फल देने के लिए
तुम्हारे फेंके गए
हर ढेले के बदले में।
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अब
दसों दिशाओं को है मालूम
मेरी व्यथा
एक बस शायद
तुम्हें ही नहीं है पता।
पराग जी,कहानियों के साथ कवितायें भी लिखिये..हमें इंतज़ार रहेगा आपकी और ताज़ा कविताओं का.
बहुत ही मासूम कविता..बिल्कुल पराग भाई की तरह मासूम,,,
बहुत अच्छी कविता… पराग जी से आग्रह है कि वे कविताएं भी लिखते रहें… मेरी बधाइयां…
अरूण शीतांश, आरा