नया ज्ञानोदय में चिन्दी चिन्दी कथा मैं पढ़ गया हूँ। पहले तो यह बताओ कि आप विमलेश हो या बिमलेश। एक ही नाम रखो तो भ्रम न होगा।
आपकी कहानी मुझे इसलिए पसंद आई है कि इसमें एक युवा मन के स्वप्न, सोच और भावुकता का अदभुत समंजन है। कहानी में तीन पीढ़ियाँ प्रवेश करती हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि हमारे समाज को धर्म ने बुरी तरह से बाँट रखा है और वे हिन्दू तथा वे मुसलमान इसके सबसे बड़े शिकार हैं जो अपने-अपने धर्म के बारे में ही कुछ नहीं जानते और अगर कुछ जानते हैं तो उनमें अपने-अपने धर्मों की सीमाओं को चुनौती देने का साहस नहीं है। इस कहानी में खामोश चुनौती देता हुआ सूरा भी अन्तत: व्यैक्तिक स्तर की धर्मांधता का शिकार होता है । वेदांत की कायरता उन तमाम हिन्दुओं की कायरता है जो हिन्दुत्ववादी शक्तियों को खुली चुनौती नहीं दे पाते। आज किसी भी मुसलमान को आतंकवादी करार देने में पुलिस को बहुत वक़्त नहीं लगता। वेदांत और अरमन की दोस्ती भी हमारे समाज में व्याप्त सांप्रदायिकता का शिकार होती है। हम अभी तक व्यक्ति-स्वातन्त्र्य का सम्मान करना सीखे नहीं है। वेदांत और अरमन के स्वप्न समान हैं- इस दुनिया को बदलना। दुनिया की चाल अपनी है। जब मैं युवा था तो मैं भी ऐसे ही सोचता था, लेकिन तब ज़िन्दगी दो वक़्त की रोटी जुटाने में गुज़र गई। दुनिया बदलने का सपना अभी भी मरा नहीं, बस उसे बदलने का तरीका बदला। हमारे पास सिर्फ़ कलम है और विचार है। उस विचार को हम कलम के ज़रिय समाज तक पहुंचाएं। वही आपने इस कहानी में किया भी है।
कहानी की बुनावट भी मुझे पसंद आई। अंत में वेदांत अली अरमन यह संकेत तो दे ही दे देता है कि छोटे स्तर पर ही सही, तमाम विरोधों के बावजूद बदलाव आ रहा है। इस बदलाव को समझना और रेखांकित करना इस कहानी की शक्ति है।मेरी बधाई और शुभकामनाएं विमलेश ! लिखते रहो। हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
समीक्षा : इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं
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कहानी मैने भी पढ़ी ….जबरदस्त है…