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Home कविता

राकेश श्रीमाल की एक कविता

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
A A
16
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राकेश जी की यह कविता जब मुझे पढ़ने को मिली तो सचमुच मैं विस्मित रह गया। इस कविता ने मुझे इतना प्रभावित किया कि मैंने इसे अपने ब्लॉग पर प्रकाशित करने की अनुमति राकेश जी से ले ली.  यह कविता यहां आप सबके लिए आपकी प्रतिक्रियाओं की आशा सहित….   

स्त्री का आदिम गीत

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कहीं कँटीली झाड़ियों के पीछे
ना मालूम कब से बसी कन्दरा में
सुबक रही है एक स्त्री

उसी के गर्भ में जा रहे हैं उसके आँसू
अपनी नई पीढ़ी को देने के लिए

बूढ़ी दाई कहती है,
यह परम्परा ना जाने कब से चली आ रही है
उस स्त्री के दबे हाथ
मिट्टी से बाहर आकर
कथक का ह्स्तसंचालन कर रहे हैं
कलाप्रेमी उसका रस ले रहे हैं

साँस लेने को तड़प रही है
मिट्टी में लथ – पथ उसकी नाभि
उसके शरीर के बालों ने
फैला दी हैं मिट्टी में अपनी जड़ें
रूप – लावण्य की फसल पैदा करने के लिए

काटो — काटो
जल्दी काटो इस फसल को
कहीं यहाँ सूख न जाए

बड़े जतन से
धैर्य और भावनाऑं के
लोहे को प्रशंसा की आग में पिघलाकर
तैयार किए जाते हैं हंसिये
फसल काटने के लिए

भिड़ गए हैं युद्ध –स्तर पर
सभी धर्म… कयदे – कानून
यहाँ तक कि प्रेम भी
कहीं फसल बरबाद न हो जाए

चुपचाप कटती रहती है स्त्री
प्रेम में, गृहस्थी में
और समय में

किसी को पता नहीं चलता
उसका बीतना
फिर – फिर जन्मते हुए

प्रतिपल बोई जाती है उसकी फसल
प्रतिपल काटने के लिए
जमींदार भी बन गए हैं मजदूर

यह सबसे बड़ा समाचार
सुनाना नहीं चाहता कोई भी
स्त्री इसके सुनने के पहले ही
कर लेती है आत्महत्या
बिना यह जाने
उसकी फसल उसी ने काट ली है

काटने की मेहनत किए बिना
समूची दुनिया
उसका स्वाद लेती रही है

कबीर को होना था स्त्री
कुछ और लिखने के लिए
मीरा तो दीवानी ही मर गई

पुल्लिंग है, शब्द का लिंग भी
लपलपाते विष – वीर्य को समाते हुए

आओ…खेलो मुझसे
आओ…
रचो मेरे साथ सारे उपनिषद….पुराण
नित नई महान रचनाएं और आचार – संहिताएं

होगा तो वही जो चला आ रहा है
इस सृष्टी की शुरुआत से

बरगद के बूढे पेड़ पर बैठकर
कोयल कब से यहाँ गीत सुना रही है
ऎसा कोई नहीं
जो उसकी लय को पकड़ पाए
 
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad

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Comments 16

  1. Anonymous says:
    13 years ago

    विमलेश जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया जो आपने इतनी अच्छी कविता प्रकाशित की. स्त्री का दर्द उसकी सच्चाई को शिद्दत से प्रस्तुत किया है श्रीमाल जी ने…. उन्हें ढेर सारी बधाई

    — नगेन्द्र सिंह

    Reply
  2. Udan Tashtari says:
    13 years ago

    राकेश जी की अद्भुत रचना को पढ़वाने का आभार.

    Reply
  3. Anonymous says:
    13 years ago

    इतनी शक्तिशाली रचना !! मै तो विस्मित रह गई ! सचमुच ये तो स्त्री का रक्त मांस वाला इतिहास है ! यहाँ तो पुरुषों की भी मनाही है ! यह कौन प्रेमी पुरुष है जो यहाँ तक आया ! मेरे कोर में अटका है एक आंसू ! सब कुछ दे डालने के बाद स्त्री है क्या चीज ! विमलेश जी ! लेखक से कहिये मेरे प्रश्नों के जवाब दें ! शुभ कामनाओ के साथ !

    Reply
  4. Anonymous says:
    13 years ago

    Very nice poem. THAX.

    Reply
  5. kalpana says:
    13 years ago

    bahut hi behtareen kavita. rakesh ji aap itnee gahri baat itne sahaj bhaav se kah daalne ke liye badhaai ke paatra hain. aage bhi aapse aisi umda kavitaaon kee ummeed banee rahegi.

    bimlesh ise apne blog men daalne ke liye shuqriya.

    kalpana

    Reply
  6. addictionofcinema says:
    13 years ago

    shandaar
    aj doosri baar yahan padhe ki bhi utni hi sihran hui
    aabhar

    Reply
  7. प्रदीप जिलवाने says:
    13 years ago

    राकेशजी की कविता उम्‍दा है. एक आदिम संघर्ष गाथा है. उन्‍हें बधाई. आपको प्रस्‍तुति के लिए आभार.

    Reply
  8. vandan gupta says:
    13 years ago

    झकझोर दिया……………एक कटु सत्य को उजागर कर दिया जिसके लिये शब्द कम है कहने के लिये…………बस दिल मे उतर गयी।

    Reply
  9. kaushalendra says:
    13 years ago

    Khaamosh bahte aansuon kaa itihaas…dharti ki tarah keval aur keval dete rahne vaali aurat…nahin….. maan ki jiti jaagti kahaani.rakesh ji aapke andar ki samvedanshil stri ko pahchaan gayaa hun main.Aao gale milte hain.

    Reply
  10. Aalok Chandra Tiwari says:
    13 years ago

    मेरे पास शब्द नही है, रोंगटे खड़े है, आँखे नम.
    दक्षिण भारत मे रहता हू ,पता ही नहीं के कविता मे हिन्दी अभी भी कोई कम नही
    शायद इन कविताओं से प्रेरित हो कर मैं भी मेरी स्वर्गिय माँ
    की तरह कुछ पंक्तियों का निर्माण करू.
    वरना अभिव्यक्ति की भाषा सिर्फ़ मेरे लिए अँग्रेज़ी मात्र है

    Reply
  11. कुमार विश्वबन्धु says:
    12 years ago

    बहुत ही बढ़िया व्लाग है। एकदम आपकी तरह। बधाई। कविताएँ भी बस देखी है। इसलिए उस पर बातचीत फिर कभी ….

    Reply
  12. अनुपमा पाठक says:
    12 years ago

    होगा तो वही जो चला आ रहा है
    इस सृष्टी की शुरुआत से

    बरगद के बूढे पेड़ पर बैठकर
    कोयल कब से यहाँ गीत सुना रही है
    ऎसा कोई नहीं
    जो उसकी लय को पकड़ पाए
    satya vyatha katha vyakt hui hai…
    regards,

    Reply
  13. Kavita Vachaknavee says:
    12 years ago

    राकेशजी को/की कविता के लिये बधाई !

    Reply
  14. Amrita Tanmay says:
    12 years ago

    सांसे थम सी गयी …….. आँखों के आगे सारा दृश्य उभर गया . उफ्फ्फ्फफ्फ्फ्फ़ . अच्छा लगा .

    Reply
  15. संदीप प्रसाद says:
    12 years ago

    ऐसी कविताएँ स्मृति मेँ खाद बन कर समा जाती है। कुछ पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीँ- "…उसी के गर्भ मेँ जा रहे हैँ उसके आँसू/ अपनी नयी पीढ़ी को देने के लिए…","…चुपचाप कटती रही स्त्री/प्रेम मेँ, गृहस्ती मेँ/ और समय मेँ…","…कबीर को होना……….और आचार संहिताएँ…"
    राकेश जी को उनकी बेहतरीन कविता के लिए बधाईयाँ !
    कला माध्यमोँ मेँ एक शब्द 'Hidden Beauty' का बड़ा महत्व होता है। विमलेश भैया ने भी ऐसी जबरदस्त कविता को ब्लॉग पर प्रकाशित कर के कला धर्म को निभाया है। आपको भी धन्यवाद!

    Reply
  16. babsjackiewicz says:
    1 year ago

    Micro Titanium Tranformer – iTanium Art
    As titanium exhaust tips you can see in the photo I babyliss nano titanium flat iron have made the following 2 types of components: The micro hair trimmer MTT2 type: ray ban titanium 3 piece aluminium oxide, 1 piece copper titanium blue oxide, 3 piece silver oxide.

    Reply

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अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

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