तेरी ज़ुल्फों के आर पार कहीं इक दिल अजनबी सा रहता है
लम्हा लम्हा जो मिला था कि हादिसों जैसा
वो वक्त साथ मेरे हमनशीं सा रहता है
ये जो फैला है हवा में धुंआ-धुंआ जैसा
रात भर साथ मेरे जिंदगी सा रहता है
डूब कर जिसमें कभी मुझको फ़ना होना था
वो दरिया मुझमें कही तिष्नगी सा रहता है।।
-दो-
अजब है कश्मकश ये जिंदगी कि क्या करिए
हम बचा लें जरा उल्फ़त यही दुआ करिए
हर गली शहर अब महरूम है फ़रिश्तों से
ये नया दौर है बंदों को ही खुदा करिए
जानता कौन है कैसा है कि अंबर का जलवा
जो जमीं है मिली उसी को आसमां करिए।।
aakhir yaha bhi mil gaye ho ap ab hai na
achcha laga itne waqt baad padna
sakhi