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Home कविता

विमलेश त्रिपाठी की गजलें.

by Anhadkolkata
June 25, 2022
in कविता, साहित्य
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1
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तेरी ज़ुल्फों के आर पार कहीं इक दिल अजनबी सा रहता है

लम्हा लम्हा जो मिला था कि हादिसों जैसा
वो वक्त साथ मेरे हमनशीं सा रहता है

ये जो फैला है हवा में धुंआ-धुंआ जैसा
रात भर साथ मेरे जिंदगी सा रहता है

डूब कर जिसमें कभी मुझको फ़ना होना था
वो दरिया मुझमें कही तिष्नगी सा रहता है।।

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-दो-

अजब है कश्मकश ये जिंदगी कि क्या करिए

हम बचा लें जरा उल्फ़त यही दुआ करिए

हर गली शहर अब महरूम है फ़रिश्तों से

ये नया दौर है बंदों को ही खुदा करिए

जानता कौन है कैसा है कि अंबर का जलवा

जो जमीं है मिली उसी को आसमां करिए।।

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Comments 1

  1. sakhi with feelings says:
    15 years ago

    aakhir yaha bhi mil gaye ho ap ab hai na
    achcha laga itne waqt baad padna

    sakhi

    Reply

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अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

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