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नित्यानंद गायेन |
नित्यानंद गायेन की कविताओं की सहजता ही उनकी मौलिकता भी है। यह कहना चाहिए कि वे कविता को कहीं से भी दुरूह और चमत्कारी बनाने के फेरे में नहीं पड़ते। इसलिए इनकी कविताओं में शिल्प की बारीकियां देखने को नहीं मिलतीं। लेकिन यह कवि जो कहना चाहता है वह सहज संप्रेषित होता है और कवित्व भी बचा रहता है।
क्या कविता में इस तरह की सहजता और संप्रेषणियता आज के समय की जरूरत नहीं है। मैं कहूंगा कि है और सौ फिसदी है। सहजता और साफगोई से बात करना मुझे लगता है कि आज भी बहुत कठिन है। मैं अपने सहित आज के समकालीन कवियों से यह जरूर अपेक्षा करूंगा कि कविता को सहज संप्रेषणीय बनाया जाए। भाषा और शिल्प की सहजता की मार्फत कविता पैदा करना, बड़ी कविता पैदा करना, आज की कविता की सबसे बड़ी चुनौती है।
अनहद पर इस बार नित्यानंद गायेन की कविताएं। आपकी बेबाक प्रतिक्रियाओं का इंतजार रहेगा।
कर सकता हूं अनुवाद
मैं कर सकता हूं
अनुवाद
पीड़ा का , प्रेम का
आंसुओं से
अनुवाद कर सकता हूं
षड्यंत्र और चालाकी का
चुप्पी और मुस्कान से
मण्डली, चोला और बोली देखकर
कर सकता हूं अनुवाद
तुम्हारी अपेक्षाओं का …
मैं मूक जरूर हूं
पर अचेत नही ……
आंसू न बहाना
मेरे शव पर
आंसू न बहाना
क्योंकि
पानी में सड़ कर फूल जाता है शव
महज़ औपचरिकता
के नाम पर
मत आना
अंतिम दर्शन को
हंस पड़ेंगे सभी रोते -रोते
तब
मेरी मृत देह
सह न पायेगा
तुम्हारा उपहास
बस दबे पावं आकर
ले जाना जो कुछ
पड़ा है तुम्हारा
मेरे उस कमरे में …..
सांप का ज़हर पानी निकला
आज शाम
ठीक साढ़े सात बजे
निकला जब
कालेज भवन से
और चल रहा था
खोये हुए मन से
सहम कर रुक गया अचानक
सड़क पर रेंगते हुए एक
सांप को देखकर
और वह भी
डर गया था मेरे कदमों की आहट से
अवश्य वह मुझसे पहले डरा होगा
भई मैं आदमी जो हूँ
मेरे रुकने पर वह भागने लगा
पर आदमी से कौन बच सकता है भला ?
वहीं कुचल डाला मैंने उसे
सोचा बड़ा ज़हरीला है
किन्तु मेरे
भय और क्रोध के आगे
उस सांप का ज़हर पानी निकला।
चारमीनार जो खड़ा है
निज़ाम का शहर
हैदराबाद —
बदल गया है समय के साथ
और —
चारमीनार जो खड़ा है
सदियों से मूक
एक गवाह बनकर
इस बदलाव को
देख रहा है इस बदलते शहर के
तहज़ीब को
बड़ी बारीकी से
पुरानी सड़के अब चमकने लगी हैं
किन्तु —-
अब भी दौड़ रहे हैं
नन्हे नंगे पैर
उन सडको पर दौड़ती हुई
गाड़ियों के पीछे
उन नंगे पैरों पर दौड़ते
बचपन को सरकार
कल का नागरिक कहती है
इधर लोग रोज़ देख रहे हैं
चारमीनार को
और सोच रहे हैं उसे एक
मूक – बहरा मीनार मात्र
किन्तु —
इसी चार मीनार ने
देखी और सुनी है
हर बार तमाम
भयंकर चीखें …
गीदड़ कितना धूर्त है
शेर भी अब जान चुके हैं
गीदड़ कितना धूर्त है
हारकर भाग गए हैं
जंगल छोड़कर सब शेर
गीदड़ भागते शेरों को देखकर
हंस रहे हैं
अब इस जंगल में
गीदड़ों का राज है
सम्पूर्ण सत्ता आज गीदड़ों के
पास है
नोच डाला इन गीदड़ो ने
हरे – भरे जंगल की सुन्दरता को
तोड़ डाला है
कच्चे- पक्के अंगूर के सारी
डालियों को
किन्तु मुझे यकीन है
एक दिन लौट आयेंगे
भागे हुए सभी शेर
अपने इस जंगल में
एक नई ऊर्जा के साथ
तब इन गीदड़ो की
खैर सोच कर
मुझे हंसी आती है
परिचय
20 अगस्त 1981 को शिखरबाली, पश्चिम बंगाल में जन्मे नित्यानंद गायेन की कवितायें और लेख सर्वनाम, अक्षरपर्व, कृति ओर, समयांतर, समकालीन तीसरी दुनिया,अलाव , मार्ग दर्शक , अविराम , स्त्री होकर सवाल करती है ,छपते –छपते, जिन्दा लोग , हंस , जनसत्ता, हिंदी मिलाप आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित । लघु पत्रिका संकेत “का कविता केंद्रित अंक भी उनकी कविताओं के साथ प्रकाशित। उनका एक काव्य संग्रह अपने हिस्से का प्रेम संकेत प्रकाशन से हाल ही में प्रकाशित। नित्यानंद फिलहाल हैदराबाद के एक निजी संस्थान में अध्यापन व स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं।
सम्पर्क – कमरा न . २०२ . प्लाट न -४-३८ /२/बी , श्री .आर .पी .दुबे कालोनी ,शेरिलिंगमपल्ली, हैदराबाद -१९
हस्ताक्षर: Bimlesh/Anhad
बहुत सहज और अच्छी कविताएँ। बधाई।
मेरे अपने नित्य की कवितायें यहाँ देखकर अच्छा लगा विमलेश, धन्यवाद कि तुमने इसकी कवितायें लगाई……………मुझे एक लंबे समय से इसकी कवितायें लिखना है और मेरी नजर में इस युवा कवि को कविता के लिए ज्ञानपीठ दिया जाना चाहिए क्योकि इस लिए नहीं कि यह एक अच्छा कवि है वरन इसलिए भी कि एक लंबे समय से संघर्ष करके यह कवि आज इस मुकाम पर पहुंचा है कि आज देश की लगभग हर पत्रिका में इसकी कवितायें पढ़ी और गुनी जा रही है. इस कवि में बहुत तेज धार है जो जीवन के विकत और बिरले अनुभवों से सजकर कविता के बहुत ही स्वाभाविक रूप में निकलती है, बहरहाल बढाए तुम दोनों को……………और नित्य लिखते रहो अभी मंजिल दूर है………बहुत स्नेह सहित…….
संदीप नाईक , देवास से……
achi kaitayai hai nityananda. Badhayi
Shukriya Santosh Bhaiya,Sandip Naik Ji,Brajesh ji
nityanand ki sahajta unki pratibaddhata ka prtiroop hai. isi tarah ki sahaj-sundar kavitayen hi kavita ko sankat se bacha sakati hain. unaki kavitayen hamain aashwast karati hain bhawishya ke liye.