• मुखपृष्ठ
  • अनहद के बारे में
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक नियम
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
अनहद
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध
No Result
View All Result
अनहद
No Result
View All Result
Home कथा

हंसा दीप की कहानी : लाइलाज

by Anhadkolkata
April 24, 2024
in कथा
A A
0
Share on FacebookShare on TwitterShare on Telegram

हंसा दीप का  नाम प्रवासी रचनकारों में महत्वपूर्ण है। वे दीर्घ काल से रचनारत हैं और हिन्दी कहानी के क्षेत्र में एक सार्थक हस्तक्षेप किया है। अनहद कोलकाता पर प्रस्तुत है उनकी नवीनतम कहानी लाइलाज। आपकी कीमती राय का इंतजार तो रहेगा ही।

हंसा दीप

लाइलाज

घर का ताला बंद करके निकली तो आज पड़ोस वाले घर में कुछ नये चेहरे दिखे। पिछले कुछ वर्षों से मैं देख रही थी कि कई पड़ोसी तो दिन-रात की तरह तेजी से बदलते हैं, तो कई मौसम की तरह कुछ महीनों में। कब, कौन-सा नया चेहरा आ जाए और यह कहते हुए हाय-हलो कर दे कि “हम आपके पड़ोसी हैं” पता ही नहीं चलता। खैर, ये पड़ोसी कुछ अलग थे, अपनों जैसे लगे। चेहरे-मोहरे देखकर सहज ही उनके भारतीय होने का अनुमान हुआ। वैसे इस मामले में कई बार मैंने धोखा खाया है। जब कभी किसी को देखकर लगता कि ये भारत से होंगे तो वे कहीं और के निकलते। कभी जवाब मिलता श्री लंका से, कभी बांग्लादेश तो कभी पाकिस्तान से। ये भारतीय चेहरे भारत की राजधानी दिल्ली से आए थे और इस तरह गलती की संभावनाएँ इस बार गलत निकलीं।
पहली मुलाकात में परिचय इतना ही हुआ। उनके साथ एक प्यारी-सी बच्ची थी। तकरीबन तीन से चार साल की तो होगी। मैंने उससे पूछा – “हाय बेटा, आपका नाम क्या है?”
“मिनी।”
अपनी हिन्दी में किसी बच्चे से बात करना इन दिनों एक अजूबा-सा था। सुकून मिला अपनों की सूची बढ़ाने का। अब तो जब-तब, कभी लिफ्ट में, कभी कचरा फेंकने के कमरे में तो कभी लॉबी में टकराते हम एक दूसरे से। कभी अकेले मिनी की मम्मी, कभी पापा, तो कभी तीनों साथ में दिखने लगे। दंपत्ति युवा थे मगर दोनों का चेहरा बुझा-बुझा-सा रहता था। ढीला-ढाला हाय-हलो, और ढीली-ढाली चाल-ढाल। न तो दोनों के कपड़े सिलवटों से मुक्त होते, न ही बाल करीने से सँवारे हुए होते। लगता जैसे उनके चेहरे ही नहीं पूरे व्यक्तित्व पर हवाइयाँ उड़ रही हों। मुझे लगा मानो कुछ तो ऐसा है जो उन्हें परेशान कर रहा है। कोई ऐसी वजह है कि वे दोनों खुश नहीं हैं। फिर एक दिन मैंने पूछ ही लिया– “कोई परेशानी है, जॉब नहीं है क्या?”
यह एक स्वाभाविक-सा प्रश्न था क्योंकि आमतौर पर एक परेशानी सबको रहती है कि “काम नहीं मिल रहा।” नये देश में आ तो जाते हैं लोग लेकिन जब बहुत पापड़ बेलने के बाद भी काम नहीं मिलता तो मानसिक तनावों से गुजरना पड़ता है।
“जॉब तो ठीक है आंटी जी, पर मिनी की तबीयत ठीक नहीं।” मिनी की मम्मी ने जल्दी से जवाब दिया। इतनी जल्दी मानो वह इसी सवाल की प्रतीक्षा कर रही हो कि आपबीती सुनाकर मन हल्का कर ले। मैंने बच्ची को देखा। वह कहीं से बीमार नहीं लग रही थी।
“पेट दर्द होता है। रात में बहुत रोती है। हम भारत से यहाँ इसीलिये आए हैं कि इसका इलाज हो सके।”
“जॉब-वॉब की कोई चिंता नहीं है आंटी जी, बस इसका इलाज ठीक से हो जाए।” मिनी के पापा की आवाज आश्वस्त कर रही थी कि पैसों की वाकई कोई परेशानी नहीं है उन्हें।
“ओहो, क्या यहाँ आने के बाद पेट दर्द होने लगा?”
“नहीं, नहीं, पेट दर्द की परेशानी तो तब से है जब मिनी तीन महीने की थी।”
“अच्छा! डॉक्टर क्या कहते हैं?”
“भारत के डॉक्टरों को कुछ समझ नहीं आया। तीन साल से इधर से उधर भटकाते रहे पर बच्ची को आराम नहीं मिला।”
“जब हमने देखा कि कैनेडा का मेडिकल सिस्टम अच्छा है तो बस यहाँ के लिये आवेदन कर दिया। यहाँ आने का हमारा मकसद इसका इलाज ही है आंटी जी, वरना हम तो बहुत खुश थे भारत में।” मिनी के पापा ने अपना स्वर मिलाया।
मुझे उत्सुकता थी यह जानने की कि कागजात तैयार होने में तो साल भर लग गया होगा। जितना समय इस प्रक्रिया में लगा उतने समय तक भारत में इलाज चल भी रहा था या नहीं। मेरी वह जिज्ञासा दबी की दबी रह गयी क्योंकि अभी-अभी परिचय हुआ है, ऐसे सवाल शिष्टाचार के खिलाफ हो सकते हैं। वैसे भी वह युवा जोड़ा था और मैं आंटियों की उस श्रेणी में थी जहाँ ऐसे सवालों का जी-भर कर मजाक उड़ाया जा सकता था।
मिनी की मम्मी ने मेरे क्षणिक मौन को तोड़ा- “हमारा अनुमान सही नहीं था। नाम का ही है यहाँ का सिस्टम आंटी, कोई दम नहीं है। यहाँ पर भी ठीक से इलाज नहीं हो रहा।” मिनी की मम्मी ने प्यार से मिनी के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
“आप प्रायमरी फिजिशियन के पास गए थे या फिर अस्पताल?”
“सब जगह गए आंटी जी, हम तो पिछले चार महीनों से यहाँ हैं। बस आपके पड़ोस में आए एक सप्ताह हुआ है।”
“कहाँ-कहाँ नहीं गए आंटी जी, बल्कि यूँ कहिए कि कभी इसके पास तो कभी उसके पास, जाते ही रहते हैं। इनके इलाज से हम तो बिल्कुल संतुष्ट नहीं हैं।” एक वाक्य मिनी की मम्मी कहती, दूसरा उसके पापा उसी बात का समर्थन करते हुए कहते।
“मैं कुछ समझी नहीं!”
“देखिए आंटीजी, इसे यह तकलीफ बहुत दिनों से है, हमें पता है कि इसे किस चीज की जरूरत है। ये लोग तो कुछ और ही करते हैं।”
“मतलब?”
“हम कह रहे हैं कि हमें एक्सपर्ट के पास भेजो, वे कहते हैं, इसकी जरूरत नहीं। हम कहते हैं एक्सरे करवाओ पर वो अल्ट्रा साउंड करवा रहे हैं।”
“आप क्यों एक्सरे करवाना चाहते हैं?”
“एक्सरे में पता लगेगा न कि परेशानी क्या है, भारत में भी एक्सरे करके ही देख रहे थे सारे डॉक्टर।”
“परन्तु अभी तो आपने कहा कि भारत में कुछ नहीं हो पाया। आपको यहाँ के मेडिकल सिस्टम पर विश्वास है। अब जो वे कहते हैं, करना पड़ेगा न, यहाँ उन्हें अपनी तरह जाँच करनी होगी।”
“जाँच क्या आंटीजी, सारी रिपोर्ट तो हमारे पास पहले से है। हमने सारे पेपर्स दे दिए हैं इन्हें। हर बार ये लोग वही कर रहे हैं जो भारत में किया जा चुका है। बच्ची दर्द से परेशान है, देखा नहीं जाता हमसे। हम सो ही नहीं पा रहे हैं, रात-रात भर जागना पड़ता है।”
“रात भर सोऊँगा नहीं तो सुबह काम पर कैसे जा पाऊँगा, बताइए आप!”
“सच कहा, वह तो आपको देखकर ही लग रहा है।” मैंने उन दोनों पति-पत्नी के बुझे चेहरों को देखकर कहा।
“बस बार-बार बुला रहे हैं, कभी यहाँ तो कभी वहाँ। एक तो इतनी ठंड है यहाँ, माइनस दस और माइनस बीस में वैसे ही फ्रीज़ हो रहे हैं।”
“मैं कोई मदद कर सकूँ तो जरूर बताएँ।”
“आपकी नजर में कोई चाइल्ड स्पेशलिस्ट डॉक्टर हो तो बताएँ आंटी जी, जिससे हम थर्ड ओपिनियन ले सकें।”
“मेरा चचेरा भाई है, जाना-माना बच्चों का विशेषज्ञ डॉक्टर। हालांकि वह कैनेडा में ही है पर दूसरे शहर में रहता है, एडमंटन में। मैं आपको उसका नंबर दे देती हूँ, आप बात कर लें शाम के समय।”
उन्होंने देर नहीं की, घर जाकर नंबर घुमाया और धरा आंटी का संदर्भ देकर बात कर ली। शाम को भाई का फोन आया – “दीदी वो आपके पड़ोसियों का फोन आया था। मैं बगैर देखे तो कुछ कह नहीं सकता, हाँ आप उनसे यह जरूर कह दें कि वे डॉक्टर की सुनें।”
भाई के कहे अनुसार संदेश तो पहुँचाया मैंने, पर थोड़ा-सा तराश दिया और कहा- “आप थोड़ा धैर्य रखें, सब कुछ ठीक हो जाएगा।”
“क्या ठीक हो जाएगा, कुछ तो कर नहीं रहे हैं यहाँ के डॉक्टर। पता नहीं कुछ आता-जाता भी है या नहीं। बच्चा परेशान है, हम सो नहीं पा रहे हैं और ये कह रहे हैं धीरज रखो।”
मिनी की मम्मी की अधीरता को उसके पापा ने व्यक्त किया – “बताइए आंटी जी। इनको दिख रहा है कि हम किस कदर परेशान हैं, एक्शन लेना चाहिए न!”
“इतने दिन हो गये, डायग्नोस ही नहीं कर पा रहे हैं।”
“इनको हज़ार बार कहा कि एक्सरे लो और हमें स्पेशलिस्ट के पास भेजो, लेकिन नहीं, कोई सुनता ही नहीं है। भारत में कम से कम डॉक्टर सुनते तो थे।”
मैं क्या कहती! भारत से आयी थी तब मैं भी अपने परिवार वालों, जान-पहचान वालों को कई नुस्खे देती रहती थी और लेती रहती थी। भारत में नीम-हकीम-डॉक्टर की कोई कमी नहीं। डॉक्टरों को छोड़कर सारी जनता डॉक्टर है। मैं सोच में पड़ गयी थी। मिनी के मम्मी-पापा को आज तक कोई इलाज पसंद नहीं आया होगा और डॉक्टर बदलते रहे होंगे। कोई दवाई अपना असर करे उसके पहले दवाई बदल जाती होगी। अब तो देश भी बदल दिया है। मैं सोचने लगी उन सब डॉक्टरों के बारे में जो मरीजों और उनके परिवार वालों की डॉक्टरी को झेलते हुए इलाज करते हैं।
अगले दिन सुबह दरवाजे पर ठक-ठक हुई। मिनी के पापा थे, कहने लगे – “आंटी जी, आज मेरी मीटिंग है और मिनी को लेकर एक नये क्लिनिक जाना है। प्लीज़, अगर आप साथ चले जाएँ तो उसकी मम्मी को थोड़ी मदद मिल जाएगी।”
मेरा पड़ोसी धर्म जाग उठा – “जरूर, आप चिंता न करें, मैं चली जाऊँगी।”
समय पर हम क्लिनिक पहुँचे। नये डॉक्टर ने सारी बातें सुनीं। मिनी की मम्मी के बहते आँसू हज़ार सलाह दे रहे थे। सहमी-सी मिनी कातर नजरों से मम्मी को रोते हुए देख रही थी। मैंने उसे बहलाते-फुसलाते कहा- “घबराओ नहीं बेटा, आप ठीक हो जाएँगे तो मम्मी नहीं रोएँगी।”
डॉक्टर अधेड़ उम्र के थे। गोरी चमड़ी थी, आकर्षक व्यक्तित्व के धनी। ऐनक नाक पर नीचे तक थी जिसे वे चढ़ाते नहीं थे बल्कि देखने के लिये खुली आँखों से देखते ताकि ऐनक सिर्फ कागज पर रहे। वे कुछ लिख रहे थे। मिनी की मम्मी ने अपनी पहली प्रतिक्रिया दी – “आंटी यह तो बड़ा खड़ूस लग रहा है।”
वाकई दो आँखें चश्मे के बाहर और दो अंदर, इस तरह चार आँखों से काम करने वाले मुझे भी कभी नहीं भाते थे। मैंने कहा – “देखते हैं क्या करता है, जरा रुको।” अहिन्दी भाषी के सामने हम कई बार अपने मन की बात हिन्दी में कहने में हिचकते नहीं। शिष्टाचार के खिलाफ जाकर एक-दो अपशब्द कहकर संतुष्ट होने की आदत-सी हो गयी थी। हमें फुसफुसाते देखकर डॉक्टर ने चश्मे से बाहर की दो आँखों से हम तीनों को बारी-बारी से घूरा, बच्ची को पास बुलाकर चैक किया, आँखें, चेहरा, पेट सब कुछ।
यह मौन हमें कुछ भयावह संकेत देने को उतावला हो रहा था।
“पहली बात, इसे यह परेशानी बहुत दिनों से है।” डॉक्टर ने हमें देखते हुए सख़्त आवाज के साथ कहा।
“जी” मेरे हलक में कुछ फँसा-सा था।
“दूसरा, मैं कोई ऐसी गारंटी नहीं दे सकता कि यह एक-दो दिन में ठीक हो जाएगी।” हम अवाक डॉक्टर का मुँह देख रहे थे।
“तीसरा, इलाज शुरू करने से पहले मुझे बेबी मिनी के रुटीन का चार्ट चाहिए। यह क्या खाती है, क्या पीती है, कब सोती है, कितनी बार उठती है, पी-पू हर चीज का रिकार्ड।”
मिनी की मम्मी हैरान-सी मुझे देखने लगी थी। आँखें मुझसे कह रही थीं– “कहा था न खड़ूस है।” मैंने हामी भरकर डॉक्टर से अतिरिक्त विनम्रता से कहा – “यह सो नहीं पाती है डॉक्टर!”
“तकलीफ हो तो कोई नहीं सो सकता, आप सो सकती हैं क्या?” चश्मे के बाहर से वे घूरती आँखें जैसे मुझे काटने को दौड़ रही थीं। मैं एकटक डॉक्टर को देखते हुए उसके द्वारा कहे जा रहे शब्दों को ध्यान से सुनने व समझने की कोशिश कर रही थी।
“मैं पहले इसकी तह तक जाकर देखूँगा कि वजह क्या है, इसके लिये कई टेस्ट करवाने पड़ेंगे।”
उसकी आवाज का तीखापन मिनी की मम्मी की आँखों में झलक आया था, रुआँसी-सी बोली- “सर सारी टेस्ट रिपोर्ट तो पहले से ही हैं। अगर आप एक्सरे करवा लें तो आपको अभी पता लग जाएगा।” अपनी वही रट फिर से उसकी जबान पर थी।
“मिस ममा, डॉक्टर कौन है यहाँ?”
“जी आप” उसने खिसियाते स्वर में कहा।
“मैंने जो कहा अगर आप कर सकती हैं तो बताइए, मैं अपने पेशेंट का इलाज शुरू करूँ।”
मैंने हिन्दी में कहा – “देखो, परेशान तो हो रहे हो तुम, अब यह भी करके देख लो।”
डॉक्टर ने हम दोनों को बारी-बारी से देखकर कहा – “मैं बार-बार यह सुनना नहीं चाहता कि एक महीना हो गया, दो महीने हो गए। अगर आप मुझे समय दे सकती हैं तो अभी तय कर लीजिए।”
हम दोनों ने एक दूसरे को देखा, शायद यह कहते हुए- “कोशिश करने में हर्ज ही क्या है।” आँखें झपकाते हुए दोनों के सिर हिले, इलाज शुरू करने की हामी भरते हुए। मिनी के मम्मी-पापा खुश तो बिल्कुल नहीं थे पर शायद मेरा साथ पाकर वे हथियार डाल चुके थे। वैसे भी और कोई विकल्प तो था नहीं उनके पास। डॉक्टर का कहा मानने की कोशिश करते हुए मैंने मिनी का रोजमर्रा का चार्ट बनाने में भरपूर मदद की। हर सप्ताह मिनी और उसकी मम्मी हाजिरी दे आते और सप्ताह की रिपोर्ट भी। क्लिनिक ने एक लंबी सूची दे दी कि उसे क्या खिलाया जाए, क्या नहीं।
“कोई दवाई नहीं दे रहे”, “ये नहीं खाने दे रहे”, “वो नहीं पीने दे रहे”, “बच्ची दुबली हो रही है।” हर दिन हजार शिकायतों के साथ डॉ. खड़ूस के नाम की माला जपती मिनी की मम्मी इस बात को मानने से इंकार नहीं कर पा रही थी कि रोज एक-एक दिन के खत्म होते, धीमी गति से मिनी के सोने का समय बढ़ रहा है।
इस बात को छह महीने बीत गए।
अब वे दोनों, और मैं भी, हम तीनों बहुत खुश हैं। बगैर एक पैसा खर्च किए, बगैर दवाई के, सिर्फ रोजमर्रा के बदलाव से मिनी ठीक हो गयी। बताया गया कि उसे हर डेयरी प्रोडक्ट से एलर्जी है, इसलिये उन सब चीजों को खिलाने से बचना होगा। वह रात में जो गिलास भर कर दूध पीकर सोती थी उससे रात भर उसका पेट दर्द करता था। मिनी के मम्मी-पापा तीन साल के बाद अब आराम से सो रहे थे। उनके पूजा घर में डॉ. खड़ूस की तस्वीर लगी थी। हर सुबह नींद की खुमारी से अंगड़ाई लेकर वे दोनों डॉ. साहब की फोटो देखकर मुस्कुराते थे। मिनी का तो सफल इलाज किया ही था, साथ-साथ उन दोनों की भी लाइलाज बीमारी का इलाज कर दिया था। सचमुच की डॉक्टरी पढ़ी व समझी थी उन्होंने। अभी भी उन्हें डॉ. खड़ूस ही कहते लेकिन बहुत प्यार व आदर से।
********

Related articles

प्रज्ञा पाण्डेय की कहानी – चिरई क जियरा उदास

अनामिका प्रिया की कहानी – थॉमस के जाने के बाद

हंसा दीप
यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो में लेक्चरार के पद पर कार्यरत। पूर्व में यॉर्क यूनिवर्सिटी, टोरंटो में हिन्दी कोर्स डायरेक्टर एवं भारतीय विश्वविद्यालयों में सहायक प्राध्यापक। चार उपन्यास व छ: कहानी संग्रह प्रकाशित। गुजराती, मराठी, बांग्ला, अंग्रेजी, उर्दू एवं पंजाबी में पुस्तकों व रचनाओं का अनुवाद। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ निरंतर प्रकाशित।

Dr. Hansa Deep
22 Farrell Avenue
North York, Toronto
ON – M2R1C8, Canada
001 647 213 1817
hansadeep8@gmail.com
********

********

Tags: Hansadeep/हंसा दीप : कहानी
ShareTweetShare
Anhadkolkata

Anhadkolkata

अनहद कोलकाता में प्रकाशित रचनाओं में प्रस्तुत विचारों से संपादक की सहमति आवश्यक नहीं है. किसी लेख या तस्वीर से आपत्ति हो तो कृपया सूचित करें। प्रूफ़ आदि में त्रुटियाँ संभव हैं। अगर आप मेल से सूचित करते हैं तो हम आपके आभारी रहेंगे।

Related Posts

प्रज्ञा पाण्डेय की कहानी – चिरई क जियरा उदास

प्रज्ञा पाण्डेय की कहानी – चिरई क जियरा उदास

by Anhadkolkata
March 30, 2025
0

प्रज्ञा पाण्डेय प्रज्ञा पाण्डेय की कहानियाँ समय-समय पर हम पत्र पत्रिकाओं में पढ़ते आए हैं एवं उन्हें सराहते भी आए हैं - उनकी कहानियों में आपको...

अनामिका प्रिया की कहानी – थॉमस के जाने के बाद

अनामिका प्रिया की कहानी – थॉमस के जाने के बाद

by Anhadkolkata
March 28, 2025
0

अनामिका प्रिया अनामिका प्रिया की कई कहानियाँ राष्ट्रीय स्तर की पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। उनकी कहानियों में संवेदना के साथ कहन की सरलता और...

उर्मिला शिरीष की कहानी – स्पेस

उर्मिला शिरीष की कहानी – स्पेस

by Anhadkolkata
March 15, 2025
0

उर्मिला शिरीष स्पेस उर्मिला शिरीष   मेरौ मन अनत कहाँ सुख पावें             जैसे उड़ जहाज को पंछी पुनि जहाज पे आये। (सूरदास)             आज चौथा...

ममता शर्मा की कहानी – औरत का दिल

ममता शर्मा की कहानी – औरत का दिल

by Anhadkolkata
March 10, 2025
0

ममता शर्मा औरत का दिल ममता शर्मा                 वह औरत का दिल तलाश रही थी। दरअसल एक दिन सुबह सवेरे उसने अख़बार  में एक ख़बर  पढ़...

सरिता सैल की कविताएँ

सरिता सैल की कहानी – रमा

by Anhadkolkata
March 9, 2025
0

सरिता सैल सरिता सैल कवि एवं अध्यापक हैं। खास बात यह है कि कर्नाटक के कारवार कस्बे में रहते हुए और मूलतः कोंकणी और मराठी भाषी...

Next Post
समीक्षा : इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं

समीक्षा : इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं

सोनी पाण्डेय की कविताएँ

सोनी पाण्डेय की कविताएँ

 पहली तनख़्वाह  

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

अनहद कोलकाता साहित्य और कलाओं की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है। डिजिटल माध्यम में हिंदी में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए ‘अनहद कोलकाता’ का प्रकाशन 2009 से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है। यह पत्रिका लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रगतिशील चेतना के प्रति प्रतिबद्ध है। यह पूर्णतः अव्यवसायिक है। इसे व्यक्तिगत संसाधनों से पिछले 12 वर्षों से लागातार प्रकाशित किया जा रहा है। अब तक इसके 500 से भी अधिक एकल अंक प्रकाशित हो चुके हैं।

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.

No Result
View All Result
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • समीक्षा
    • संस्मरण
    • विविध
  • कला
    • सिनेमा
    • पेंटिंग
    • नाटक
    • नृत्य और संगीत
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विविध

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2009-2022 अनहद कोलकाता by मेराज.