रेखा चमोली की कविताएँ स्थानीय दिखती हुई भी आदमी की संवेदनाओं से जुड़कर इसलिए वैश्विक हो जाती हैं की वे स्त्री विमर्श के बने बनाये ढांचे को तोड़कर समानता की ऐसी जमीन की तलाश करती हुई दिखती हैं जहां स्त्री महज जेंडर नहीं बल्कि एक विवेकशील, तर्कशील फैसले लेने वाली, अपनी थाती को ‘उत्तराधिकारी’ देती और ‘मोटरसाईकिल पर लड़कियों’ की निर्द्वंद्वता को स्थापित करती दृढ़ मनुष्य हैं । यदि जनपदीयता के वैश्विक हो जाने को समकालीन कविता की एक महत विशेषता मान लिया जाए तो हमे यह भी मानना ही होगा कि रेखा चमोली की कविताओं का कैनवास बहुत व्यापक है।
पिछले दिनों बीते ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ के अवसर पर प्रस्तुत है रेखा चमोली की चुनी हुई कविताएं। आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार तो रहेगा ही ..
1- उत्तराधिकारी
अपने बारे में बताना बहुत जरूरी हुआ तो मैं
अपने बच्चों को अपनी दोस्ती के बारे में बताऊँगी
अपनी यात्राओं और गलतियों के बारे में बताऊँगी
अपने असफल प्रेम के बारे में बात करूंगी
पर नहीं करूंगी अपने किसी नए पुराने दुश्मन का जिक्र
मैं उन्हें अपनी लडाइयों का हथियार नहीं बनाऊँगी
मेरे बच्चे मेरी दोस्ती और प्रेम के उत्तराधिकारी हैं।
2- शिरीष के फूल
सुबह सुबह
हांफती दौड़ती झेंपती सहर,शर्माती आ रही है एक औरत
दूर तक उसको आवाज लगाती पहुंची है
शिरीष फूलों की महक
मानों पूछ रही हों
कल कहां थीं तुम ?
कह रही हों
आओ न !!!!!
अभी देर नहीं हुयी है
बहुत कुछ बचा हुआ है
बची हुयी है खिलने महकने की लालसा
बचा हुआ है निःशब्द झर जाने का साहस।
3- शुभयात्रा
रोज की तरह शुभयात्रा कहूं
रोज ही तो किसी न किसी यात्रा पर निकलते हो तुम
तुम्हारे संग मैं भी यात्रा कर लेती हूं
कभी खुशी खुशी तो कभी जोर जबरदस्ती की
इस यात्रा के लिए क्या कहूं
लौट आना
संभव हो तो
न भी लौटना तो बचाए रखना लौटने की लालसा
जानते हुए भी कि लौटने पर चीजें नहीं मिलतीं पहले सी
कई बार लौटना खालीपन से भर देता है
कई बार न लौटना लौटने से ज्यादा मायने रखता है
लौटने न लौटने का सारा भार तुम पर नहीं डाल रही हूं
मुझे क्या ??
तुम कहीं भी रहो खुश रहो
ऐसे बने रहो कि तुमसे प्रेम करती रहूं मैं सदा
तुम इन पहाड़ों में लौटो न लौटो
हर बार मेरी आवाज के जबाब में जरूर लौटे तुम्हारी आवाज
आवाज भर मेरे प्रिय।
4- दुनियादारी
मां भी अजीब है
वर्षों पहले बचपन में मरे
मुझसे दो साल छोटे भाई की तस्वीर पर राखी बंधवाती है
उससे मेरी सुरक्षा की प्रार्थना करती है
और दो दो जवान भाइयों को
मेरे मामले में दखल न देने की नसीहत देती है
मां मरे भाई पर भरोसा करती है
और जिंदा भाईयों को दुनियादारी सिखाती है।
5- बुरे सपने
बचपन में जब कभी कोई बुरा सपना देख डर जाती
चुपके से पापा के पास जा बनियान पकड़ के सो जाती
कितना ही बुरा क्यों न हो कोई सपना
पापा के करीब फटक नहीं सकता था
क्या हुआ ?
कोई बुरा सपना देखा ? पूछते थे पापा
सो जाओ मैं हूं पास तुम्हारे कहकर सिर पर हाथ फेरते थे।
बुरे सपने अभी भी आते हैं
बुरे सपनों ने डर के नए नए एपिसोड बना दिए हैं
इनके डर से नींद आती ही नहीं
और थोडी बहुत जब आती है तो
इनके स्याह हाथ गला दबोचने लगते हैं
मुझे छटपटाता देख नींद में ही पूछते हैं पापा
क्या हुआ ? फिर कोई बुरा सपना देखा
पूछते हुए उनकी आवाज में एक विनती होती है
सब कुछ ठीक सुनने की विनती
जबकि वे जानते हैं , कुछ भी ठीक नहीं हैं
सब ठीक है पापा ! सो जाओ ।
तुम हो न मेरे पास ,मैं कहती हूं
दूर सोए पापा यह जान ही लेते होगे
आधी रात को टूटी नींद के बाद
फिर से सोने की कोशिश करते होंगे।
6- सवाल
राजा बोला , सवाल पूछना मना है।
मंत्री बोले , सवाल पूछना मना है।
बड़े बूढे आदमी औरत सब बोले , सवाल पूछना मना है।
बच्चे बोले , लेकिन सवाल पूछना क्यों मना है ??
7- दाढ़ी में आग
भांग की तलाश में
दक्षिण के किसी कोने से हिमालय के सुदुर गांव में पहंुच गए हो
चालीस पैंतालीस की उम्र मजबूत शरीर और लंबी जटाएं
नीचे गेरूए रंग की धोती और ऊपर का शरीर नंगा
कितने भोले लगते हो जब कहते हो
अरे माता ! बाबा को चाय पिला दे
सुबह से चाय नहीं पी यार !
यार माता अपने बच्चे के हिस्से के दूध से
तुम्हारे लिए चाय बनाती है
तुम्हारे चरणों में सिर रखकर
अपने परिवार के लिए आशीष मांगती है
तुम माता की सात साल की बेटी के सामने ही अपना लंगोट सुधारते हो
जबरन अपनी गोद में खींचते हो
वह घबराकर दादी की ओट में छुप जाती है
बड़े मजे हैं तुम्हारे बाबा
कहते हो सुट्टा चाहिए मुझे तो बस
वरना इस सन्यास का क्या फायदा
हंसते हो तुम
साथ हंसते हैं सुट्टेबाज भक्त
बाबा आपने सन्यास क्यों लिया ?
एक लडकी थी पसंद बहुत
उससे शादी करना चाहता था
मां बाप को मंजूर नहीं हुआ तो छोड़ दिया घर
बिना पसंद के क्या शादी करना ?
घर की याद आती है कभी ?
मां बाप की चिंता नहीं होती ?
जब सन्यास ले लिया तो इन बातों के बारे में क्या सोचना ?
उस लड़की का क्या हुआ ?
बेचारी वो तो बहुत रोई होगी ?
जब मां बाप को ही छोड़ दिया तो लड़की क्या
लड़की तो दूसरी भी मिल जाती पर मेरा दिल टूट गया दुनिया से
उस लड़की को भी अपने साथ सन्यास दिला देते बाबा
दोनों मिलकर सुट्टा लगाते
अरे तब तो हो जाता सन्यास
सन्यासी के लिए नारी साक्षात नरक है
हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा
सच बताओ बाबा अगर वह लड़की सन्यास ले लेती
तो पहुंच पाती दक्षिण के किसी कोने से हिमालय के इस गांव तक
या रास्ते में ही दबोच ली जाती
बचा कर किसी तरह सुधार गृह में लायी जाती
वहां हर रात एक नयी मौत मरती
किसी गांव में पहुंचने पर ऐसा ही स्वागत करते क्या लोग ?
लडकियां संयासी बनना भी चाहें तो दुनिया उन्हें कहां संयासी रहने देती है ?
अकेली लड़की को दुश्चरित्र मानने की प्रथा अभी बनी हुयी है
बहुत खुशकिस्मत होती हैं वो लड़कियां जिनकी शादी में उनकी मर्जी पूछी जाती है
तुम लड़कियों के बारे में बहुत कम जानते हो भगोड़े बाबा
लड़कियां भगोड़ी नहीं होतीं
लड़कियां घर बसाती हैं
लड़कियां गाय पालती हैं
तीखे पहाड़ों , फिसलन भरे रास्तों से घास का भारी बोझा लाती हैं
तभी तुम कह पाते हो एक चाय पिला दे यार माता
मुझे उस दिन का इंतजार है जब माता तुम्हें चाय पिलाने के बजाए
चाय का फ्राइनगपैन तुम्हारे सिर पे दे मारे
ये कहकर तुम्हें घर से निकाल दे
साले सुट्टे बाज लुच्चे पछ मुख होगा तेरा
माता की यह ललकार सुन
तुम और तुम्हारे सुट्टेबाज भक्त दुबारा कभी माताओं के आसपास जाने की हिम्मत न करें
और ये जल्दी होने वाला है
सात साल की बच्ची ने अपनी दादी की गोद में मुंह छुपाए रोते रोते कुछ बताया है
तुम्हारी दाढी में आग लगने ही वाली है।
( पछ मुख होना – दुबारा दिखाई न देने की बददुआ)
8 प्रेम
मैं तुमसे प्रेम करती हूं
इसीलिए
तुम्हारे साथ सती नहीं हो गयी
मैं तुमसे प्रेम करती हूं
इसीलिए
हमारे बच्चों को और ज्यादा प्यार और संभाल से देख रही हूं
मैं तुमसे प्रेम करती हूं
इसीलिए
बिस्तर में पड़ी नहीं हूं
अपने बचे खुचे साहस के साथ जीवन से लड़ ‐ रही हूं
क्योंकि मैं जानती हूं
तुमने एक मजबूत और जिंदादिल लड़की से प्यार किया है ।
9 – अबे क्या देख रहा है ?
सुनो लड़कियों !
कोई घूर के देखे न
तो नजरें नीचीं न करना
झेंपना नहीं जरा भी
नजरें पहचानती हो न ?
इसलिए जरा भी बुरी नजर से देखती
नजर को देखना तो
देखना तुम भी वापस घूरकर
और पूछना जोरदार आवाज में
अबे ! क्या देख रहा है ??
10- तुम्हें कितनी समानता चाहिए ?
मुझे इतनी समानता चाहिए कि
किसी दिन देर तक सोना चाहूं तो
मेरी नींद में चक्कर न लगाएं घर के काम
न सुनाई दें चाय नाश्ते की पुकार लगाती आवाजें
आंगन की धूल मेरी नींद की जलन न बने
दूसरों के छूट गए कामों को याद न दिलाने के लिए
कोई ताना न राह देखता हो
बल्कि कभी ऐसा हो तो जगने पर तुम कहो
आज बड़ी अच्छी नींद आई तुम्हें
कितनी तरोताजा लग रही हो
तुम्हारे आसपास होते ही
मेरे हाथ मेरे कपड़े न ठीक करने लगें
मैं अपना दुपट्टा न ढूंढने लगूं
तुम्हें भइया भइया कह बुलाने न लगूं
इसके बजाए तुम जब भी रहो मेरे आसपास ऐसे रहो
जैसे रहते हैं कोई भी दो पेड़
एक दूसरे से अपनी हवा बांटते
मेरे काम की तुम तारीफ न करो तो चलेगा
पर उसे वैसे ही जांचों परखो
जैसे किसी पुरूष कर्मचारी का जांचते परखते हो
तुम ये न कहो
गणित पढ़ाना मैडम के वश की बात नहीं
या क्या तुम जा पाओगी इस शहर से उस शहर अकेली
कर पाओगी देर रात तक मीटिंग
रह पाओगी होटल में अकेले
अकेले ड्राइव करने में कोई ऊंच नीच हो गयी तो ?
इसके बजाए जब मैं कर रही हूँ अपना काम
तुम ध्यान रखो कि कहीं मेरा काम तुम्हारी वजह से रूक तो नहीं रहा
तुम्हारी वजह से मैं कम तो नहीं हो रही
तुम ये सोचो हजारों सालों से जिनको
बहुत से मौकों से जगहों से भूमिकाओं से
जबरन और सोच समझकर हटाया गया
उनको उनकी सही जगह लेने में क्या मदद कर सकते हो ?
बहुत लम्बी नहीं है मेरी लिस्ट
बस इतनी सी बात है
तुम और मैं
समान अधिकार से खा पी सकें
कहीं आ जा सकें
ओढ पहन सकें पढ़ लिख सकें काम कर सकें
और ये सब इतना सहज हो कि
मेरा स्त्री और तुम्हारा पुरूष होना
हमारे जीने के बीच कोई बाधा न बने।
11- ख्याल -1
अपना ख्याल रखना
इस समय का सबसे जरूरी वाक्य है
ये जानते हुए भी कि
अपना ख्याल रखना
अपने वश में कितना कम है।
ख्याल – 2
कुछ जगहें ऐसी होती हैं
जहां से कोई भेजना भी चाहे तो
किसी को नहीं भेज सकता कोई संदेश
कुछ जगहों से भेजे जा सकते हैं संदेशे
लेकिन भेजना नहीं चाहते लोग
संदेशे न भेज पाने की पीड़ा
संदेशे न मिलने की पीड़ा
एक बराबर होती होगी क्या
दोनों ही स्थितियों में सुलगता है मन
जो जानना चाहता है अपने प्रिय की कोई खबर
आज की दुनिया में जब कुछ नंबर भर दूर हैं लोग
किसी की कोई खबर न मिलना
सांस भर आक्सीजन न मिलने से कम है क्या ?
12- मोटरसाईकिल पर लड़की
बहुत अच्छी लगीं मुझे वे लड़कियां
जो लाख मना करने पर भी
कभी बताकर
तो कभी चोरी छुपे मोटरसाइकिल सीखने गईं
उन्हें नहीं रोक पाई मां की नसीहतें
हाथ पैर टूट गए तो कौन ब्याहेगा तुझसे ?
पिता हमेशा संशय में रहे
मेरी बेटी , मेरी बेटी नहीं बेटा है
कहते हुए उनकी आवाज लड़खड़ा जाती
जिसे सिर्फ वे सुन पाते और कभी कभी मां
बेटी ने इस लड़खड़ाहट को तब पहचाना
जब दरवाजे पर लड़के वाले पहुंचे
मोटरसाईकिल सीखने की बात पर पिता बोले ,
मेरी बेटी किसी से कम है क्या ??
और फिर चुपचाप अखबार पढ़ने लगे
वे जान गए थे
अबकी नहीं रोक पाएंगे बेटी को
उनकी बेटी के पैर में पहिए लग गए हैं
नजर में उड़ान भर गई है
छोटा भाई जिसने खुद ही छुप छुपाकर सीखा था मोटरसाईकिल चलाना
माँ से जिद करके ली थी सबसे सस्ती वाली मोटरसाईकिल
खुशी खुशी सिखाने को तैयार हो गया
कुछ अंकल आंटियों को एक आंख न भाई यह बात
उन्होंने रोकने की पूरी कोशिश की
पहले इशारों से फिर खुलमखुल्ला
लड़की हाथ से निकल जाएगी
पता नहीं कहां कहां किस किस के साथ आएगी जाएगी
अरे !! बाइक में इस तरह बैठने से मां बनने की ताकत कम होती है
चरित्रहीन होती हैं इस तरह लड़कों वाली हरकतें करने वाली लड़कियां
बाइक संभालना लड़कियों के वश की बात नहीं
लड़कियों को लड़कियों की तरह रहना चाहिए
ऐसी लंबी लिस्ट थी जिसको सुनकर हर दिन घर में बहस होती
हर दिन लड़की हाथ जोड़ती मिन्नतें करती
हर दिन और अच्छी लड़की बनने की कोशिश करती
प्लीज पापा !प्लीज मां ! करते करते लड़की ने सीख ही लिया मोटरसाईकिल चलाना
आज पापा को बिठाकर बाजार घूमने गयी है
पापा खुश हो रहे हैं मन ही मन
कह रहे हैं , ”आगे देखो आगे“
हार्न बजाओ
गाड़ी दूसरों के नहीं अपने भरोसे चलाते हैं
तुम्हें बाइक सीखने को हां बोला है
मेरी जिम्मेदारी है कोई गड़बड़ नहीं होना चाहिए
लड़की को यह सब नहीं सुनाई दे रहा
उसे दिख रही है सड़क
सड़क पर चलते लोग गाएं खच्चर ठेली वाले स्कूल से आते बच्चे
वह सोच रही है
कितना आसान है मोटरसाईकिल चलाना
कितना मुश्किल है एक लड़की का मोटरसाईकिल चलाना ??
मैं इस लड़की को देखकर खुश हो रही हूं
इसके सपनों की थोड़ी सी उड़ान मेरे भीतर भी भर गई है।
13- सौभाग्यवती
सुनो लोगों !!!
मुझे सौभाग्यवती का आशीर्वाद देते समय हिचको नहीं
नहीं दांतो तले काटो अपनी जुबान
न ही अरे रे रे ..हे राम कह दया से देखो
यूँ तो मैं किसी भाग्य वाग्य को नहीं मानती
फिर भी कहती हूँ तुमसे
सौभाग्यवती हूँ मैं
खूब लाड़ प्यार से पली बढ़ी हूँ
खूब अरमान और शान से ब्याही गई
मैं किसी पर थोपी नहीं गयी
मुझे प्रार्थनाओं और व्रतों से पाया था किसी ने
मैं उसके लिए चांद सूरज थी
सुबह की मुस्कान रात का आराम थी
ये और बात कि वो चला गया दुनिया से मुझसे पहले
कि मौत पर किसी का वश नहीं चलता
कि महामारी में मरी हैं लाखों औरतें भी
ये एक जुआ था जिसमें मैं बच गयी
और वो मर गया
बिल्कुल उल्टा भी हो सकता था इसका
सिर्फ मैं जानती हूं
कहीं नहीं गया वह
मेरे भीतर बस गया है
मेरी ताकत बनकर
मुझे जरा भी कमजोर देख मुझसे लड़ता झगड़ता
मुझे मनाता और कहता
मेरी जान ! तुम्हें जीना है दोगुना क्योंकि अब मैं भी तुममें जीता हूँ
अब तुम ही बताओ
जो स्त्री भरी पड़ी है प्रेम से
जिसके भीतर सांस लेता है प्रेम
और जो हर पल जीती है दोगुनी
क्या वो नहीं है सौभाग्यवती ?
मेरा सौभाग्य मैं स्वयंम हूँ ।।
14- पिता
अपने अपने आकाश होते हैं हमारे
जिसके नीचे हम फलते फूलते हैं
गलतियां करते और सुधरते हैं
दुनिया से भिड़ते और संभलते हैं
आगे बढ़ते पीछे हटते सीखते हैं
झुझंलाते खुद को तोलते अपनी कीमत आंकते हैं
उन तमाम चीजों की उम्मीदें करते हैं
जो बहुत बार हमारी क्षमताओं से बड़ी होती हैं
हम दौड़ते हैं बिना यह सोचे कि
जीवन की रेस में थक कर गिर पड़ेंगे या
हो जाएंगे पार
हम यह सब करते हैं
अपने अपने आकाश तले
जिसका पता हमें पिता के न रहने पर चलता है।
कवि परिचय :
रेखा चमोली – कवयित्री और शिक्षिका संपर्क : :द्वारा श्री बी डी चमोली, चमोली सदन : ऋषिराम शिक्षण संस्थान ,जोशियाड़, उत्तरकाशी -249193 (उत्तराखंड )